गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

इनसाईट स्टोरी: जागे लेकिन काफी देर बाद

इनसाईट स्टोरी: जागे लेकिन काफी देर बाद

मूल्यपरक शिक्षा का अभाव

अपराध, आतंक, हत्या, बलात्कार, लूट ये सब अब हमारे देश की नियति बन चुकी है। आर्थिक विकास औरबौद्धिक विकास का दावा करने वाले भारतीय समाज का ये वीभत्स रूप आख़िर क्यों दिख रहा है? मोबाइल औरतमाम अन्य सुविधाओं से लबरेज इस समाज की मत्ती मारी जा चुकी है। इसका मुख्य कारण मूलय्परक शिक्षा का पूर्णतया अभाव है। बच्चे के लिए प्रायमरी शिक्षा के साथ मीड - डे मील देने की व्यवस्था तो कर दी गई लेकिन जीवन मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयास करने की सुध किसी को नही रही। आतंकी कौन बनते हैं? कौन करता है अपराध? इन सवालों की तह तक जायें तो एक बात साफ़ सामने आती है की बिना जीवन आदर्शों ओर संवेदनशीलता के साथ जवान होने वाला बचपन आसानी से गुमराह किया जा सकता है। न ही सरकारी ओर न ही पब्लिक स्कूल इस बात की परवाह कर रहें हैं की वे बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दे रहें हैं। हर एक सिर्फ़ पैसा कमाना चाहता है। शिक्षा को बेचने और खरीदने वालों की भरमार है। लेकिन आख़िर कब तक ये देश बिना मूल्यों के चल पायेगा। ये बात शर्म की है कि एक समय दुनिया को नैतिकता कि शिक्षा देने वाला ये देश आज अपने नैतिक पतन के चरम पर है। आख़िर हम क्यों नहीं सोच रहें हैं इस बारे में? क्या नैतिक शिक्षा और जीवन आदर्शों कि स्थापना के लिए भी मीड - डे मील की तरह का कोई कार्यक्रम विश्व बैंक के सहयोग से चलाना होगा। जो भीं पाठक इस लेख को पढे इस पर अपने विचार अवश्य भेजे। हम आप सभी के विचार इनसाईट स्टोरी के माध्यम से दुनिया तक पहुचायेंगे।

अपने विचार geetedu@gmail.com पर भेजें।

आशुतोष पाण्डेय

बुधवार, 3 दिसंबर 2008

जागे लेकिन काफी देर बाद

आख़िरकार अन्तर्राष्ट्रीय किरकिरी होने के बाद मुंबई में आतंक की गूँज हमारे प्रधानमंत्री जी को सुनाई दी। मंत्रिमंडल में फेरबदल किए गए। कई नए आये, पुरानो की छुट्टी कर दी गई। शिवराज साहब की छूट्टी इस सरकार का एतिहासिक कदम माना जा रहा है। लेकिन काफी देर के बाद सरकार जागी। कही शुक्र है जागी तो सही। लेकिन अभी भी जो किया गया क्या वो सब काफी ? हमारी सेना, खुफिया एजेंसियां क्या करती हैं इसका जवाब भी सरकार को देना चाहिए, बेखौफ आतंकी घूम रहें हैं, और हमारे नौकरशाह और हुक्मरान अपने घर भरने में मस्त हैं। वोट, कुर्सी, सत्ता और ताकत के लिए मासूम देशवासियों का खून बहाया जा रहा हैं। हमारी इनसाईट स्टोरी टीम ने बात की १०० से अधिक लोगों से हर एक ने कहा हमारा देश आज हमारी सरकारों और राजनीती की नाकामी के चलते बारूद के ढेर पर खडा है। प्रधानमंत्री को अफसोस नही होता होगा शायद नहीं होता होगा। हर धमाके के साथ शियासत जो चलती है। अगर प्रधानमंत्री मानते हैं ऐसा नहीं है तो 'अफजल' को संभाल कर क्यों रखतें हैं? देश मात्र आर्थिक नियमों से नही चलता इसे चलाने के लिए राष्ट्रीयता की भावना की आवश्यकता होती है, चमचागिरी की नहीं। जरा ध्यान दीजिये प्रधानमंत्री महोदय इतिहास लिखा जा रहा है।
आशुतोष पाण्डेय
संपादक 'इनसाईट स्टोरी'

शनिवार, 29 नवंबर 2008

हार गया आतंक, भारत जीत गया




२६ नवंबर २००८, मुंबई आतंकवाद का कहर धमाके, मौत, खौफ के बीच आख़िर हम जीत गए। वे हार गए हमारी हिम्मत से। चंद डरपोक लोगों ने कोशिश की भारत को तोड़ने की। लेकिन हम हार नहीं मानेंगे, हम सारे देशवासी एक साथ हैं। जो हमसे टकराएगा उसे हम नेस्तनाबूद कर देंगे। हम चुप हैं इसका मतलब ये नहीं की हम डरते हैं। आज समय आ गया है जब की सारा देश एक आवाज से ये कहे बस बहुत हो गया। अब बस करो नहीं तो मिटा दिए जाओगे। हमारी पुलिस, सेना, ओर कमांडों ने साबित कर दिखाया की वे हर आतंक खात्मा करने का जज्बा रखतें हैं। सारे देश की ओर से सलाम हमारे जाबाजों को। जो शहीद हुये हैं, उनकी शहादत बेकार नहीं जायेगी। हर भारतीय अब लडेगा, इस आतंक से। हम सब अपनी सरकार के साथ खड़े हैं। सरकार को इनसाईट स्टोरी का संदेश, हम काम करेंगे इस ब्लॉग मैगजीन के जरिये अपने देश की अखंडता की रक्षा की।
(आशुतोष पाण्डेय)

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

मोटापे के लक्षण

एक शोध के अनुसार गर्भावस्था में ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने से भ्रूण के मस्तिष्क में बदलाव आते हैं जिससे बच्चे की ज़िंदगी की शुरूआत में ही ज़्यादा खाने और मोटापे के लक्षण विकसित हो जाते हैं.
चूहों पर किए गए शोध बताते हैं कि जो बच्चे ऐसी माँओं से पैदा होते हैं जो ज़्यादा वसायुक्त भोजन करती हैं, उनके मस्तिष्क की कोशिकाएं ज़्यादा भूख लगाने वाली प्रोटीन का उत्पादन करती हैं.
रॉकफ़ैलर यूनिवर्सिटी की टीम का कहना है कि ये खोज यह बताने में मदद करती है कि क्यों पिछले कुछ वर्षों में मोटे चूहे बढ़ते जा रहे हैं?
इस अध्ययन के परिणाम न्यूरोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। वयस्क जानवरों पर किए पिछले शोध बताते हैं कि ट्राइग्लिसरॉयड नाम के वसा कण जब रक्त में पहुँचते हैं तो वे मस्तिष्क में ओरेक्सीजेनिक पेप्टॉयड नाम की प्रोटीन का उत्पादन करते हैं जो भूख बढ़ाते हैं। ताज़ा अध्ययन संकेत देते हैं कि माँ के भोजन के माध्यम से ट्राइग्लिसरॉयड पहुँचने से विकसित हो रहे भ्रूण के मस्तिष्क पर भी वही असर होता है और जिसका असर अगली पीढ़ी की पूरी ज़िंदगी पर पड़ता है.
वैज्ञानिकों ने दो सप्ताह तक चूहों के ऐसे बच्चों की तुलना की जिनकी माँओं ने ज़्यादा वसायुक्त भोजन किया और जिनकी माँओं ने साधारण भोजन किया था। उन्होंने पाया कि ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने वाली माँओं के बच्चों ने ज़्यादा खाया और पूरी ज़िंदगी उनका वजन ज़्यादा रहा.
साथ ही उनमें साधारण भोजन करने वाली माँओं के बच्चों के मुक़ाबले काफ़ी पहले वयस्कता के लक्षण भी देखे गए।
जन्म के वक्त उनके रक्त में ट्राइग्लिसरॉयड का स्तर भी ज़्यादा पाया गया और वयस्क होने के बाद उनके मस्तिष्क में ओरेक्सीजेनिक पेप्टायड का उत्पादन भी ज़्यादा हुआ।
इसकी ज़्यादा विस्तृत समीक्षा बताती है कि जन्म से पहले भी वसायुक्त भोजन करने वाले चूहे के बच्चे में ऐसी मस्तिष्क कोशिकाओं की संख्या ज़्यादा थी जो ओरेक्सीजेनिक पेप्टायड का उत्पादन करती थीं और ऐसा पूरी ज़िंदगी होता था।
उनकी माँओं का वसायुक्त भोजन इन कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ाने वाला प्रतीत होता है.
दूसरी ओर इसके विपरीत साधारण भोजन करने वाली माँओं के बच्चों में ये कोशिकाएं बहुत कम नज़र आईं और वे भी जन्म के काफ़ी समय बाद दिखीं।
प्रमुख शोधार्थी डॉ सारा लीबोविज़ ने कहा, "हमें इस बात के सबूत मिले हैं कि गर्भावस्था के दौरान माँ के रक्त की वसा कोशिकाएं भ्रूण में जन्म के बाद ज़्यादा खाने के लक्षण और वजन बढ़ाना भी तय करती हैं।"
शोधार्थी संकेत देते हैं कि भ्रूण का मस्तिष्क इस तरह प्रोग्राम हो जाता है कि आने वाली पीढ़ियाँ अपनी माँ की तरह ही भोजन करें। वे मानते हैं कि मानव में भी ऐसा ही हो सकता है। डॉ लीबोविज़ कहती हैं, " हम ही अपने बच्चों को मोटापे के लिए प्रोग्राम करते हैं।"
चेरिटी वेट कंसर्न के मेडिकल डायरेक्टर डॉ इयान कैंपबैल करती हैं, " यह तो मालूम है कि गर्भावस्था में ज़्यादा वसायुक्त भोजन करने से बच्चे में भी ज़्यादा वसायुक्त खाने की इच्छा आती है लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों होता है।"
उन्होंने कहा, " स्पष्ट है कि हमारी आदतें सिर्फ़ अपने भोजन पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि काफ़ी हद तक हमारी आदतें अपनी माँ के भोजन पर आधारित हैं।"
उनका कहना है कि अपने बच्चे को स्वस्थ भोजन कराने का समय गर्भावस्था से ही शुरू हो जाता है।

आशुतोष पाण्डेय

बुधवार, 12 नवंबर 2008

जीवन जीने के मंत्र

  • मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति, उसके द्बारा चाहे गए परिणामों को प्राप्त करना है।
  • आप जैसा चाहेंगे पा लेंगे।
  • आप जैसा बनना चाहेंगे बन जायेंगे।
  • सफलता की सीढ़ी सदा ऊपर की ओर जाती है।

(आशुतोष पाण्डेय)

बुधवार, 5 नवंबर 2008

इतिहास बदलाव और बदलने का नाम है

इतिहास बदलाव और बदलने का नाम है। अमरीका के राष्ट्रपति चुनावों में इतिहास को धता देते हुए डेमोक्रेटिक पार्टी के बराक ओबामा अमरीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति चुने गए हैं। उन्हें 52 प्रतिशत वोट मिले जबकि रिपब्लिकन जॉन मैक्केन को 47 प्रतिशत मत मिले हैं। मतदान में लगभग 11 करोड़ अमरीकियों ने भाग लिया है। जातीय संघर्ष के इतिहास के गवाह रहे अमेरिका के वह पहले अश्वेत राष्ट्रपति है जो कभी बहुत कम आमदनी में एक सामुदायिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया करते थे। आख़िरकार ओबामा ने वो कर दिखाया जो वे अक्सर खा करते थे की एक दिन युगांतरकारी परिवर्तन होगा। उनकी जीत इस मायने में महत्वपूर्ण है कि 45 साल पहले मानवाधिकार आंदोलन के प्रणेता मार्टिन लूथर किंग ने समानता का जो सपना देखा था वह आज सच हो गया। आमतौर पर भारत समर्थक माने जाने वाले 47 वर्षीय ओबामा अपने नाम और जाति के कारण जानते थे कि व्हाइट हाउस तक पहुंचने का उनका सफर कितना मुश्किल होगा। उन्होंने एक बार कहा भी था कि यह एक युगांतकारी परिवर्तन होगा। केन्याई पिता और श्वेत अमेरिकी माता की संतान ओबामा ने यह कर दिखाया। अमेरिकी जनता को उनमें वह सब नजर आया जिसकी उसे इस कठिन वक्त में दरकार है। हारवर्ड में पढे़ ओबामा ने 21 माह के कठिन प्रचार अभियान के बाद दुनिया का सबसे ताकतवर ओहदा हासिल किया। पार्टी का उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने पहले अपनी ही पार्टी की हिलेरी क्लिंटन और फिर वियतनाम युद्ध के सेना नायक जान मैक्केन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका में एक बडे़ बदलाव के संकेत के साथ व्हाइट हाउस की दौड़ में बाजी मार ली। ओबामा की जीत ने अमेरिकी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। देश सदियों जातीय वैमनस्यता का कोपभाजन बना रहा। आज से 200 साल पहले जिस सामाजिक बुराई का अंत हुआ उसकी सुखद अनुभूति का भी यह जीत प्रतीक है। शिकागो केएक सामुदायिक कार्यकर्ता ओबामा के लिए व्हाइट हाउस की पहली पायदान इलिओनिस की सीनेट रही। सन् 1996 में इस जीत से लोकप्रिय हुए ओबामा सन् 2004 में संघीय सीनेट तक जा पहुंचे। अपने सहज व्यक्तित्व से ओबामा जल्द मीडिया की सुर्खियां बनने लगे। उन्होंने इसे बहुआयामी स्वरूप दिया और लेखन में जल्द बुलंदी हासिल की। उनकी दो पुस्तकें द आडेसिटी ऑफ होप तथा ड्रीम फ्राम माई फादर बेहद सराही गई। आठ साल से सत्ता के शीर्ष पद से दूर डेमोक्रेट पार्टी में ओबामा ने एक नई जान फूंक दी। उनका नामांकन वाकई पार्टी के लिए जादुई साबित हुआ।

महत्वपूर्ण अमरीकी प्रांतों - फ़्लोरिडा, ओहायो और पेन्नसिलवेनिया में जीत के बाद ओबामा ने आसानी से 538 इलेक्टॉरल कॉलेज मतों में से 270 का आँकड़ा पार कर लिया। अभी चुनावी नतीजों के रुझान आ ही रहे थे कि मैक्केन ने हार स्वीकार कर ली। इसके बाद अपने भावुक समर्थकों को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा, "अमरीकी लोगों ने घोषणा की है कि बदलाव का समय आ गया है। अमरीका एक शताब्दी में सबसे गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है मैं सभी अमरीकियों को साथ लेकर चलना चाहता हूँ - उनकों भी जिन्होंने मेरे लिए वोट नहीं डाला....". ओबामा ने कहा, "ये नेतृत्व का एक नया सवेरा है. जो लोग दुनिया को ध्वस्त करना चाहते हैं, उन्हें मैं कहना चाहता हूँ कि हम तुम्हें हराएँगे. जो लोग सुरक्षा और शांति चाहते हैं, हम उनकी मदद करेंगे..."

इनसाईट स्टोरी के लिए ये विशेष आलेख सम्पादक आशुतोष पाण्डेय ने अपने तमाम सहयोगियों के साथ मिलकर तैयार किया है।

शनिवार, 1 नवंबर 2008

शिक्षा मौलिक अधिकार

भारत सरकार ने लंबे समय से लटके शिक्षा को मौलिक अधिकार प्रदान करने वाले विधेयक को मंज़ूरी दे दी है। इस विधेयक में छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त में शिक्षा देने का प्रावधान रखा गया है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने नई दिल्ली में पत्रकारों को मंत्रिमंडल के फ़ैसले की जानकारी दी। मंत्रिमंडल की बैठक गुरुवार रात को हुई थी। उन्होंने बताया, "कई स्तर पर मंत्रियों के समूह ने इस विधेयक पर विचार-विमर्श किया। अब मंत्रिमंडल ने विधेयक के मसौदे को मंज़ूरी दे दी है।" इसके बाद अब यह केंद्र और राज्य सरकारों का क़ानूनी दायित्व होगा कि वे छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा दें। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, इसलिए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय चुनाव आयोग से सलाह-मशविरा करने के बाद विधेयक का मसौदा जारी कर देगा.
मंत्रियों के समूह को यह काम सौंपा गया था कि वे इस विधेयक की समीक्षा करें. इस महीने के शुरू में मंत्रियों के समूह ने विधेयक के मसौदे को मंज़ूरी दे दी थी. मंत्रियों के समूह ने किसी भी विवादित प्रावधान को हटाने की कोशिश नहीं की. इनमें वो प्रावधान भी शामिल है जिसमें कहा गया था कि प्राइवेट स्कूलों में शुरुआती स्तर पर विपन्न बच्चों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण रहेगा।
विधेयक में यह भी प्रावधान है जाँच प्रक्रिया के नाम पर बच्चों या उनके माता-पिता से ना तो साक्षात्कार होगा, न डोनेशन देना होगा औ न ही कैपिटेशन फ़ीस ही लगेगा.
शिक्षा के अधिकार वाला विधेयक से ही संविधान के 86वाँ संशोधन को अधिसूचित किया जा सकेगा। इस संशोधन के तहत छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार दिया गया है. संसद ने इसे दिसंबर 2002 में पास किया था।

आशुतोष पाण्डेय

बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

प्राइवेसी मानवाधिकार है

दुनिया की तीन दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनियों माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और याहू ने विभिन्न आधिकारिक हस्तक्षेप रोकने और ऑनलाइन पर बोलने की आज़ादी की सुरक्षा के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इन तीनों कंपनियों ने ऐसे समय में ये समझौता किया है जब इन कंपनियों पर चीन जैसे देशों में इंटरनेट पर पाबंदी लगाने में सरकार का सहयोग करने के आरोप लग रहे हैं। इस समझौते के निर्देशों के तहत जब बोलने की आज़ादी का मामला सामने आएगा तो ये कंपनियां आपस में तय करेंगी कि कितने आकड़े अधिकारियों को उपलब्ध कराए जाएं। ह्यूमन राइट्स फर्स्ट के अधिकारी माइक पोस्नर का कहना था कि ये ऑनलाइन से जुड़े मामलों की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है। उनका कहना था, ''कंपनियों को थोड़ा आक्रामक होना होगा और अनचाहे सरकारी हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी होगी। '' इस समझौते में कहा गया है कि प्राइवेसी ''मानवाधिकार है और मानव सम्मान का गारंटीकर्ता है।'' इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन के डैनी ओ ब्रायन का कहना था, ''पारदर्शिता अपनाने के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है।'' गूगल की ग्लोबल पब्लिक पॉलीसी के निदेशक एंड्रयू मैकलॉलिन का कहना हैं कि हम कोशिश कर रहे हैं और कई लोगों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं क्योंकि अकेले कंपनियां वो नहीं पा सकती जो कई लोग मिलकर कर सकते हैं। गूगल पर पूर्व में आरोप लगे थे कि उन्होंने चीनी सरकार की मदद की थी। असल में चीन की सरकार उन लोगों पर नज़र रखती है जो इंटरनेट पर थिआनमन चौराहा या लोकतंत्र के नाम पर सर्च करते हैं और गूगल लोगों पर नज़र रखने में चीन सरकार की मदद कर रहा था। उधर माइक्रोसॉफ्ट पर चीनी सरकार का विरोध करने वाले एक रिसर्चर का ब्लॉग रोकने का आरोप भी लगे हैं। उल्लेखनीय है कि चीन में अभी भी मीडिया की स्वतंत्रता पर पाबंदियां हैं और सर्च इंजनों पर सरकार की मदद करने के आरोप यदा कदा लगते रहे हैं। इन तीन बड़ी कंपनियों के बीच जो समझौता हूआ है उसकी शुरुआत ग्लोबल नेटवर्क इनिशिएटिव के तहत हुई है जिसमें इंटरनेट कंपनियों के अलावा मानवाधिकार संगठन, निवेशक और बुद्धिजीवी भी शामिल हैं।
संपादन

(आशुतोष पाण्डेय)

बुधवार, 24 सितंबर 2008

नशे की लत एचआईवी की बढ़ती वजह


सारी दुनिया में दिन- प्रति दिन सुई के जरिए नशीले पदार्थ लेने वालों लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है। एचआईवी संक्रमण की दर उन लोगों के बीच बढ़ रही है जो सुई के ज़रिए नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में क़रीब 30 लाख ऐसे लोग एचआईवी से संक्रमित हो सकते हैं जो सुइयों के ज़रिए नशीले पदार्थ लेते हैं। नेपाल, इंडोनेशिया, थाईलैंड, बर्मा, यूक्रेन, कीनिया, ब्राजील, अर्जेंटीना और एस्तोनिया में तो नशीले पदार्थों के सेवन के आदी 40 प्रतिशत लोग एचआईवी से ग्रस्त आने वाले सालों में यह स्थिति और भयावह हो सकती है। शोधार्थियों को अफ़्रीका से कोई आकडें नहीं मिल पायें हैं, इस पर विशेषज्ञों ने चिंता जताई है और कहा है कि जिन वजहों से एचआईवी का संक्रमण इस तेज़ी से फैला है उसके स्पष्ट संकेत इस महाद्वीप में भी पाये गए हैं। उन्होंने कहा है कि इस समस्या की ओर गंभीरता पूर्वक ध्यान देने की ज़रुरत है। इस शोध में भाग लेने वाले ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने एचआईवी संक्रमण से प्रभावित लोगों से संबंधित आँकड़ों का गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार सुई के ज़रिए नशीले पदार्थ लेने वालों और उनके बीच एचआईवी के संक्रमण दोनों में ही वृद्धि हो रही है। सुई के साझे इस्तेमाल की वजह से एचआईवी का वायरस मुख्य रूप से फैलता है। हालांकि कुछ देश एचआईवी से संक्रमित लोगों की दर को कम रखने में सफल रहे हैं। ब्रिटेन में 2.3 प्रतिशत तथा न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में 1.5 प्रतिशत लोग जो सुई के जरिए नशीले पदार्थ लेते हैं, एचआईवी से संक्रमित हैं। शोधार्थियों का कहना है कि 1980 के दशक में इन देशों में तेज़ी से 'नीडल एक्सचेंज प्रोग्राम' को लागू करने के कारण एचआईवी के दर को कम करने मे सफलता मिली। 'नीडल एक्सचेंज प्रोग्राम' के तहत सुई के ज़रिए नशीले पदार्थ लेने वालों को इस्तेमाल की गई सुई के बदले साफ़ सुथरी सुई दी जाती है। रिपोर्ट का कहना है कि एचआईवी संक्रमण को रोकने के लिए 'नीडल एक्सचेंज प्रोग्राम' और नशीले पदार्थ लेने से रोकने के लिए अन्य कार्यक्रम लागू करने की ज़रुरत है। लेकिन नशे जद में जकडे ये लोग वास्तव में किसी भी कार्यक्रम या योजना का लाभ नहीं उठा पातें हैं। इनसाईट स्टोरी ने एसे कई लोगों से बातचीत की हर एक का मानना है की नशे की आदत बन जाने के बाद ये मालूम ही नहीं चलता है की हम क्या कर रहे हैं, नशे की तड़प मनुष्य की भला बुरा सोचने की सामर्थ्य को क्षीण कर देती है।
(आशुतोष पाण्डेय)
सम्पादक
सहयोग
(अंजू )
सहसंपादक

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

कैसे बना था ब्रह्माण्ड

कैसे बना था ब्रह्माण्ड? क्या हुआ था सुदूर अंतरिक्ष में लाखों साल पूर्व हुए उस जबरदस्त धमाके 'बिग बैंग' के बाद? ऐसे तमाम प्रश्नों का हल वैज्ञानिक अब तक के सबसे बड़े परीक्षण में खोजने जा रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग से पृथ्वी के विनाश की तमाम अटकलों को सिरे से खारिज किया है।
अपने आप में अनोखे इस प्रयोग को स्विटजरलैंड और फ्रांस की सीमा पर 85 देशों के करीब 2500 वैज्ञानिक अंजाम देंगे। इसमें जमीन के 80 मीटर अंदर 27 किलोमीटर लंबे एक सुरंग में 'लार्ज हेड्रोन कोलाइडर' [एलएचसी] मशीन के जरिए ठीक वैसी परिस्थितियां पैदा की जाएंगी जैसी 'बिग बैंग' के एक नैनो सेकेंड बाद हुई थीं। एलएचसी को जिनेवा स्थित यूरोपियन सेंटर फार न्यूक्लियर रिसर्च [सीईआरएन] ने तैयार किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस प्रयोग से ब्रह्मांड की उत्पत्तिके रहस्यों पर से पर्दा उठ सकेगा। इस पूरी परियोजना पर कुल 9.2 अरब डालर [4.1 खरब रुपये] का खर्च आने की उम्मीद है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस प्रयोग से वे ब्रह्मांड के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले 'डार्क मैटर' व 'हिग्स बोसोन' संबंधित जानकारियां जुटा सकेंगे। 1964 में स्काटलैंड के वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने इन कणों की खोज की थी। इन कणों से बने पदार्थ ने ही ब्रह्मांड के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई। कुछ लोगों का कहना है कि इस परीक्षण से धरती ब्लैक होल में समा सकती है। हालांकि इस प्रयोग से जुड़े वैज्ञानिकों ने इन आशंकाओं को निराधार बताया है। उनका कहना है कि इस प्रयोग से बनने वाले ब्लैक होल्स से किसी तरह का कोई खतरा नहीं होगा। अभियान से जुड़े भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी के मुताबिक एलएचसी से धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं है। यदि ऐसा कुछ होता तो वैज्ञानिक इस प्रयोग का जोखिम नहीं उठाते। ब्रह्मांड की उत्पत्तिलगभग 14 अरब वर्ष पहले हुई जिसमें धरती की उम्र करीब साढ़े चार अरब वर्ष मानी जाती है। तब से लेकर अब तक ब्रह्मांड में न जाने कितनी घटनाएं हुई लेकिन धरती के अस्तित्व पर कभी कोई संकट नहीं आया।
एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक अमिताभ पांडे के अनुसार ब्रह्मांड में उच्च ऊर्जा वाले प्रोटान आपस में टकराते हैं जबकि परीक्षण में उनकी तुलना में काफी कम ऊर्जा वाले प्रोटानों की टक्कर कराई जाएगी। प्रयोग का उद्देश्य यह पता लगाना है कि ब्रह्मांड का निर्माण करने वाला पदार्थ कैसे अस्तित्व में आया।
स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमा पर होने जा रहे अभूतपूर्व परीक्षण पर पूरी दुनिया की निगाहें हैं। इस अभियान से भारत के भी तीस वैज्ञानिक जुड़े हैं। भारतीय समयानुसार दोपहर 12 बजकर 30 मिनट पर जब यह परीक्षण होगा राजस्थान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर दंपति सुधीर और रश्मि रनिवाल की निगाहें भी उस पर लगी होंगी। दोनों ही इस अभियान में शामिल हैं। सुधीर ने बताया कि हमने लार्ज हेड्रोन कोलाइडर [एलएचसी] के अंदर लगने वाली प्रोटोन मल्टीपलसिटी डिटेक्टर [पीएमडी] नामक युक्ति डिजाइन की है। यह प्रोटोंस को त्वरित करने का काम करेगी। सुधीर ने कहा कि इस परीक्षण से क्वार्क-ग्लूआन प्लाज्मा [डार्क मैटर] को पैदा करने का प्रयास किया जाएगा जो ब्रह्मांड की उत्पत्तिके समय मौजूद था।
परीक्षण से जुड़े एक अन्य भारतीय वैज्ञानिक वाईपी वियोगी इससे धरती के नष्ट होने का कोई खतरा नहीं मानते। इस अभियान में भारतीय वैज्ञानिक अमिताभ पांडे भी शामिल हैं।

आशुतोष पाण्डेय
संपादक

सोमवार, 8 सितंबर 2008

भोजन और प्रजनन के लिए जिम्मेदार जीन

अमरीका के शोधार्थियों ने एक ऐसे जीन की खोज की है जो भूख और प्रजनन क्षमता को नियंत्रित करता है। यह जीन (टीओआरसी-1) मास्टर स्विच की तरह काम करता हुआ प्रतीत होता है जो भूख को नियंत्रित कर भोजन को पेट में जाने से रोकता है और गर्भधारण की अनुमति देता है। शोधार्थियों का कहना है कि यह जीन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उस समय किसी महिला को गर्भधारण नहीं करने देता जब उसके शरीर में भोजन की कमी होती है। नेचर पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार जिन मादा चूहों में यह जीन नहीं था उनका वजन अधिक पाया गया और वो बच्चे भी पैदा नहीं कर पाईं।
कम वजन वाली और कुछ अतिरिक्त वजन वाली महिलाओं को प्रजनन क्षमता संबंधी समस्याएं हो सकती हैं और केलीफ़ोर्निया के सैल्क इंस्टीट्यूट का यह शोध संकेत देता है कि टीओआरसी-1 इन दोनों मामलों में अपनी भूमिका निभाता है।
शोधार्थियों के अनुसार साधारण स्थितियों में जबकि पर्याप्त भोजन किया जाता है, तब चर्बी की कोशिकाएं एक हॉर्मोन बनाती हैं जिसे लेप्टिन कहते हैं। यह हॉर्मोन भूख को घटाने और प्रजनन क्षमता को सुचारु करने वाले जीन टीओआरसी-1 को चालू कर देता है। खाद्य पदार्थों की कमी के समय लेप्टिन की कमी से टीओआरसी-1 काम नहीं करता और भूख की देखभाल न करने के साथ गर्भधारण को भी रोकता है।
शोधार्थियों का मानना है कि यह भुखमरी और अकाल के वक्त होने वाला एक अनोखा फ़ायदा है।
उनका मानना है कि इस जीन की संख्या में अतिरिक्त वृद्धि भी मोटापे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में पहले ही काफ़ी मात्रा में भोजन किये जा चुकने पर भी यह भोजन बंद करने का संकेत नहीं देता है । उन्होंने कहा कि अगर यह जीन पीढ़ी दर पीढ़ी जाता रहे तो यह मोटापे की वंशानुगत समस्या का कारक बन जाता है। इस जीन के सही प्रकार से काम न करने से प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है और यह गर्भधारण की अनुमति नहीं देता। इसकी जाँच करने के लिए वैज्ञानिकों ने बिना टीओआरसी-1 वाले चूहों का प्रजनन कराया जिनका वजन मात्र आठ सप्ताहों के बाद ही बढ़ने लगा और दोनों ही लिंगों की प्रजनन क्षमता नकारात्मक रही। इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले प्रोफ़ेसर मार्क मोंटमिनी ने कहा कि टीओआरसी-1 ने दवाओं के लिए अच्छा रास्ता दिखा दिया है।
आशुतोष पाण्डेय
संपादक

सोमवार, 1 सितंबर 2008

अपने आने वाले बच्चे का ख्याल रखें

अगर आप गर्भवती हैं तो परफ़्यूम या ख़ुशबूदार क्रीम का प्रयोग करना आपके पैदा होने वाले बच्चे के विकास के लिए ख़तरनाक हो सकता है। एडिनबरा विश्विद्यालय के एक शोध के मुताबिक ऐसे कॉस्मेटिक्स के प्रयोग से पैदा होने वाले बच्चे की प्रजनन क्षमता पर भविष्य में नकारात्मक असर पड़ सकता है। एडिनबरा विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने दावा किया है कि गर्भावस्था के आठवें और 12वें हफ़्ते के दौरान बच्चे के भविष्य की प्रजनन संबंधी समस्याओं का निर्धारण होता है।
उनके अनुसार गर्भावस्था के वक्त कॉस्मेटिक्स में पाए जाने वाले रसायनों की गंध भविष्य में बच्चे के शरीर में शुक्राणुओं के उत्पादन को प्रभावित कर सकती है।
खैर उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि हालाँकि इस बात को पुख्ता करने के लिए उनको अब तक अंतिम सबूत नहीं मिले हैं। शोधार्थियों की इस टीम का नेतृत्व एडिनबरा स्थित मेडिकल रिसर्च काउंसिल के ह्यूमन रिप्रोडक्टिव साइंस यूनिट के प्रोफ़ेसर रिचर्ड शार्प ने किया।
चूहों पर इसका परीक्षण करने के दौरान उन्होंने एंड्रोजन्स की कार्रवाई रोक दी जिसमें टेस्टेस्टेरॉन जैसे हॉरमोन शामिल होते हैं। इस परीक्षण ने यह निश्चित कर दिया कि अगर हॉरमोन का निकलना रोक दिया जाए तो पशु प्रजनन क्षमता की समस्याओं का सामना करते हैं। और कॉस्मेटिक्स, कुछ कपड़ों और प्लास्टिक बनाने में कुछ ऐसे रसायनों का प्रयोग किया जाता है जो हॉरमोनों का निकलना बंद कर देते हैं। जिससे प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है। प्रोफ़ेसर शार्प कहते हैं कि यह रसायन पैदा होने वाले लड़कों के भविष्य में प्रजनन संबंधी दूसरी अवस्थाएं विकसित होने का ख़तरा भी बढ़ाते हैं, जिसमें टेस्टेकुलर कैंसर भी शामिल है। उन्होंने कहा कि जो महिलाएं गर्भधारण करने की योजना बना रही हैं उन्हें अपनी त्वचा पर कोई भी कॉस्मेटिक का प्रयोग करने से बचना चाहिए क्योंकि उनका शरीर सोख लेता इसे सोख लेता है। अगर आप गर्भधारण करने के बारे में सोच रही हैं तो आपको अपने जीने का तरीकों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। इन चीज़ों का प्रयोग करने का अर्थ निश्चित रूप से यही नहीं है कि आप अपने बच्चे को नुकसान पहुँचाएंगी ही लेकिन इनसे बचाव करने से निश्चित रूप से आपको सकारात्मक असर मिलेगा।
प्रो० शार्प के अनुसार, "हमारी सलाह है कि आप रसायनों वाले कॉस्मेटिक्स के इस्तेमाल से बचें। ऐसी कोई भी सामग्री जिसे आप अपनी त्वचा पर लगाएंगी, आपकी त्वचा से होते हुए आपके विकसित हो रहे बच्चे तक ज़रूर पहुँचेगी।"

(आशुतोष पाण्डेय)
सम्पादक

बुधवार, 20 अगस्त 2008

हम जीत गए! चक दे इंडिया.




आख़िरकार भारत ने ओलम्पिक में अपनी मशाल जला ही ली। निशानेबाजी के बाद कुश्ती और फ़िर मुक्के बाजी में भारत ने पदक जीत कर हर देशवासी का ओलम्पिक पदक पाने का सपना साकार किया। भारत ने आज पहली बार तीन व्यक्तिगत पदक ओलम्पिक में जीतने में कामयाबी पाई। दस मीटर निशाने बाजी में गोल्ड मैडल साथ आगाज करने वाले अभिनव बिंद्रा के बाद ६६ किलोग्राम वर्ग में कुश्ती का कांस्य पदक दिल्ली राज्य के सुशील कुमार को मिला इसके बाद ७५ किलो वर्ग में मुक्केबाजी के सेमीफाइनल में जगह बना विजेंदर कुमार ने कम से कम कांसे के पदक पर भारत की पकड़ सुनिश्चित कर ली।


७५ किलोग्राम वर्ग में विजेंदर ने बड़ी ही सधी शुरुआत करते हुए इक्वेडोर के मुक्केबाज़ कार्लोस गोंगोरा को ९-४ से हरा दिया। पहले राउंड में विजेंदर ने सधी हुई मुक्केबाज़ी करते हुए दो अंक जुटाए। दूसरे राउंड में भी वो रुक रुक कर मुक्के लगाते रहे और चार अंक जुटा लिए। तीसरे राउंड में गोंगोरा काफी थके हुए दिखे जिसका फ़ायदा विजेंदर ने उठाया और गोंगोरा को हराने में सफलता प्राप्त की। गोंगोरा से विजेंदर की टक्कर काफी मानी जा रही थी हैं, क्योंकि वे चार बार यूरोपीय चैंपियन रहे हैं। इस जीत के साथ ही विजेंदर सेमी फाइनल में पहुंचे गए हैं और उनका कांस्य पदक पक्का हो गया है, और भारत एक और गोल्ड मैडल की आस कर रहा है।


कुश्ती में भारत के सुशील कुमार ने इतिहास दोहराते हुए ३६ साल के बाद कांस्य पदक जीत लिया। इससे पहले १९५२ में भारत के केडी जाधव ने कांस्य पदक जीता था। सुशील कुमार ने ७५ किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक के लिए हुए मुक़ाबले में कज़ाखस्तान के पहलवान लियोनिड स्पिरदोनोव को हराया। इस मुकाबले में उनका मनोबल देखते ही बना। पहले हार कर फ़िर जीत पाना कुश्ती जैसे खेल में काफी कठिन माना जाता है। लेकिन शायद १९ अगस्त २००८ का ये दिन भारतीयों के नाम था और इसी दिन सुशील कुमार ने ये करिश्मा कर दिखाया। बिना संसाधनों के ओलम्पिक तक का सफर काफी कठिन होता है लेकिन ये शायद १०० करोड़ भारतीयों की दुआ का ही असर था की भारत के ये लाल अपना जलवा दिखा पाए। इनसाईट स्टोरी और एजुकेशन मंत्रा की ओर से सरे देश वाशियों को इस सफलता पर बधाई।




(आशुतोष पाण्डेय)


संपादक

रविवार, 10 अगस्त 2008

स्तन कैंसर से छुटकारा पाया जा सकता है: स्वामी रामदेव

एक अध्ययन के अनुसार पश्चिमी भोजन खाने से एशियाई मूल की महिलाओं में स्तन कैंसर का ख़तरा बढ़ सकता है। चीन के फ़ॉक्स चेज़ कैंसर सेंटर के शोधकर्ताओं ने 1500 महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन से निष्कर्ष निकाला की जिन औरतों ने मांसाहार किया उनमें शाकाहारी खाना खाने वाली औरतों की अपेक्षा बीमारी होने का जोखिम अधिक पाया गया। अध्ययन में ये भी पता चला कि सिर्फ अधिक वजन वाली और रजोनिवृत्त औरतों में पश्चिमी आहार के सेवन से स्तन कैंसर होने का ख़तरा दोगुना था। वैसे आकडों के अनुसार एशियाई मूल की महिलाओं को पश्चिमी देशों की तुलना में स्तन कैंसर का ख़तरा कम होता है लेकिन अब इनमें भी ख़तरनाक ढंग से बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। मोटापा भी इन बीमारियों को बुलावा देने में अहम भूमिका निभाता है।

भारतीय महिलाओं के बीच हमारे द्बारा किए गए एक टेलीफोनिक सर्वे के अनुसार ६७ फीसदी से ज्यादा महिलाएं स्तन कैंसर के बारे में जानती भी नही हैं। इस सर्वेक्षण में हमने नैनीताल जिले की १५० महिलाओं के विचार लिए। अधिकांश महिला चिकित्सक भी महिलाओं को इसकी जाँच करने को नहीं कहती हैं। इसमें २५ से ४५ वर्ष तक की महिलाओं से बातचीत की। आश्चर्यजनक तथ्य है की इस सर्वे में भाग लेने वाली ८८ फीसदी महिलाएं पढी लिखी थी। (नैनीताल जिले में स्तन कैसर के लिए जागरूकता एक अध्ययन: आशुतोष पाण्डेय/ अंजू स्नेहा)
जिन महिलाओं का शरीर भार सूचकांक यानी बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 से ज्यादा होता है उनमें बीमारी का ख़तरा अधिक होता है। फ़ॉक्स चेज़ कैंसर सेंटर के शोधकर्ताओं के मुताबिक रजोनिवृत महिलाएँ पश्चिमी खानपान में कटौती और नियमित व्यायाम से स्तन कैंसर के ख़तरे को कम कर सकती हैं। चीन के एंटी-कैंसर एसोसिएशन के आंकड़ो के मुताबिक 1990 के दशक में चीन के बड़े शहरों में स्तन कैंसर से होने वाली मौतों की तादात 38।9 फ़ीसदी बढ़ी जबकि इस तरह के मामलों में 37 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। इसकी ख़ास वजह खानपान की आदतों में बदलाव हो सकता है।
पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों का कहना है कि स्तन कैंसर के दस फ़ीसदी मामलों की वजह मोटापा होता है। 'ब्रेकथ्रू ब्रेस्ट कैंसर' नाम से चल रहे कैंसर प्रभारी सारा कैंट ने कहा, "खानपान और स्तन कैंसर के बीच आपसी संबंध ढूंढना बहुत कठिन है। इस अध्ययन में कुछ मुद्दों जैसे ज़्यादा उम्र में माँ बनना, व्यायाम न करना और दवाओं के सेवन की चर्चा नहीं की गई है।" सारा कैंट ने कहा कि स्तन कैंसर का ख़तरा बढ़ाने में आहार का असर पता लगाना एक जटिल काम है। भारतीय योग गुरु स्वामी रामदेव का कहना है की प्राणायाम और योग के नियमित अभ्यास से स्तन कैंसर से छुटकारा पाया जा सकता है। अभी तक रामदेव कई मरीजों का इलाज कर चुकें हैं। उनके अनुसार इसका कारण पाश्चात्य जीवन शैली है। इनसाईट स्टोरी ने कई रोगियों से बात की जिनके स्तन की गाठें मात्र योग करने से ठीक हो गयी है। रामदेव भारतीय आयुर्वेद और योग पद्धति के द्बारा हजारों रोगियों को गंभीर से गंभीर बीमारियों से निजात दिला चुके हैं। स्तन कैंसर के बारे में उनका मानना यह है की इसका इलाज प्रथम अवस्था में योग के द्बारा आसानी से किया जा सकता है। ८० प्रतिशत से अधिक रोगियों को प्रथम स्तर पर ठीक करने का दावा करने वाले रामदेव अब एड्स जैसी महामारी का इलाज आयुर्वेद में ढूँढ रहे हैं।

शोध: आशुतोष पाण्डेय

आलेख: अंजू मोनिका

शनिवार, 9 अगस्त 2008

भारतियों का जलवा

भारतीय हर जगह अपना जलवा कायम कर ही लेतें हैं। दुनिया के सभी देशों में भारतीय दिमाग एक मिशाल बन चुका ऐसी ही एक हस्ती हैं; डाक्टर महेंद्र प्रकाश गर्ग। आपको जाम्बिया में चिकित्सा के छेत्र में अपनी सेवाओ के लिए वर्ष 2007 में ORDER OF DISTINGUISHED SERVICE First divison का अवार्ड वहाँ के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया है। यह पुरूस्कार प्राप्त उत्तर प्रदेश के मूल निवासी डाक्टर महेंद्र प्रकाश गर्ग 12 वर्षों तक सीतापुर आई हॉस्पिटल सीतापुर में भी पैथोलोजिस्ट के रूप में काम कर चुके हैं। जाम्बिया में फोरेंसिक पैथोलोजिस्ट के रूप में 1990 से काम कर रहें हैं। तब वे अकेले फोरेंसिक एकस्पर्ट थे जो सारे जाम्बिया में पोस्टमार्टम का जिम्मा निभाते थे। रोज १० से ज्यादा पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर गर्ग ठेठ हिंदू होने के साथ साथ नान स्मोकर भी हैं । इससे पहले वे यूं एस ऐ घाना में भी पैथोलोजिस्ट के रूप में कार्य कर चुके हैं। वे अपने उसूलों के लिए भी जाने जातें हैं। घाना में एक ग़लत रिपोर्ट लिखने का दबाव पड़ने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। जाम्बिया में काम करने के बारे में उनका कहना है की वे यहाँ पूरे सम्मान के साथ काम कर रहे हैं यहाँ उन्हें किसी प्रकार के रंग भेद और नस्ल भेद का सामना नही करना पड़ा। जाम्बिया सरकार भी उन्हें पूरा सम्मान देती है। वे जाम्बिया सरकार के साथ फोरेंसिक पैथोलोजिस्ट को तैयार करने का काम भी कर रहें हैं। ये रिपोर्ट हमारी टीम ने डॉ हरी सिंह बिष्ट अप्तोमेत्रिस्ट (सरदार बल्लभ भाई पटेल सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र किच्छा, उत्तराखंड, इंडिया) से बातचीत के आधार पर तैयार की है। डाक्टर बिष्ट ख़ुद भी अन्धता निवारण के लिए कार्य कर रहें हैं। इसके साथ आपके द्वारा कई शोध पत्र राष्ट्रीय ओर अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रस्तुत किए जा चुकें हैं. आपका बच्चों से विशेष लगाव है। डाक्टर बिष्ट समय समय पर बच्चों से मिलकर उन्हें आंखों की सुरक्षा की जानकारियां देतें है।

गुरुवार, 7 अगस्त 2008

अमेरिकी आपदा एड्स

सारी दुनिया को अपनी मुठ्ठी में रखने का दावा करने वाला अमेरिका आज एड्स की त्रादसी का शिकार है। अमरीकी स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि हर साल एचआईवी से संक्रमित होनेवाले अमरीकी लोगों की संख्या अनुमान से कहीं अधिक है। अमरीकी संस्था सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन (सीडीसी) का कहना है कि 2006 में 56 हज़ार एचआईवी संक्रमण के मामले सामने आए। ये अनुमानों से 40 हज़ार अधिक हैं। हालांकि सीडीसी का कहना है कि संख्या में बढोत्तरी संक्रमण पता लगाने के नए तरीकों की वजह से हुई है न कि संक्रमण के कारण हुई है। हालांकि एड्स से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि ये संख्या खतरनाक है। सीडीसी के रिचर्ड वोलित्सकी का कहना है,'' नए तथ्यों से एचआईवी को लेकर समलैंगिक युवाओं में सावधानी बरतने की ज़रूरत सामने आई है। साथ ही अफ़्रीकी-अमरीकी पुरुषों और महिलाओं को भी जागरूक करने की आवश्यकता है।''
इसके पहले अंतरराष्ट्रीय राहत संस्थाओं रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट ने कहा था कि अफ़्रीका के दक्षिणी भाग में स्थित कुछ देशों में एड्स महामारी इतनी बढ़ गई है कि इसे अब आपदा की संज्ञा देना उचित होगा। संयुक्त राष्ट्र उस स्थिति को आपदा की संज्ञा देता है जिसका कोई भी समाज अपने आप सामना करने में सक्षम न हो। रेड क्रॉस और रेड क्रिसेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि एड्स महामारी एक आपदा का रूप ले चुकी है क्योंकि इससे हर साल 2.5 करोड़ लोगों की मौत हो जाती है। इसमें कहा गया था कि लगभग 3.3 करोड़ लोग एचआईवी या फिर एड्स से जूझ रहे हैं और लगभग सात हज़ार लोग हर रोज़ इससे संक्रमित हो रहे हैं। आख़िर तमाम जागरूकता कार्यक्रमों और अरबों रूपये खर्च करने के बाद भी एड्स की ये त्रासदी दिन प्रतिदिन आपदा का रूप ले रही है। इस सन्दर्भ में हमारे प्रधान संपादक आशुतोष पाण्डेय ने कई लोगों को विचार जानने चाहे, अधिकांश लोगों का मानना है की इसके लिए आज का स्वच्छंद समाज ही दोषी है। सेक्स एजुकेशन के बजाय लोगों को संयम की शिक्षा देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
इनसाईट स्टोरी टीम

शनिवार, 5 जुलाई 2008

सिगरेट से आपके बच्च्चे की जान को ख़तरा

इस लेख पर मुझे कई प्रतिक्रिया मिली हैं। सिगरेट पीने वालों और न पीने वाले दोनों की। आपकी प्रेरणा से इस श्रृंखला को आगे ले जा रहा हूँ।

"जब तक है जी जी भर कर पी।

जब न रहेगा जी कौन कहेगा पी"॥

आप जानते हैं सिगरेट क्या है, किसी ने ठीक ही खा है सिगरेट तम्बाकू से भरी कागज की एक नली है जिस के एक ओर आग और दूसरी ओर एक बेवकूफ होता है।

हर फ़िक्र को धुँए में उडाता चला गया ०००००००००००००००

अपने मर्ज को बढ़ता चला गया ०००००००००००००००० ००० ।

खैर सिगरेट के एक कस से आपकी फ़िक्र का तो न जाने क्या होगा, लेकिन यकीन मानिये आपकी सिगरेट का ये धुआं आपके आस पास के लोगों का जीवन नर्क बना देता है। आप तो पीतें हैं मस्ती के लिए, गम भुलाने के लिए या फ़िर फ़िक्र को उड़ने के लिए, लेकिन अपनों को पीने के लिए क्यों मजबूर करते हैं। आप स्मोकर हैं तो हमें पैसिव स्मोकर क्यों बना रहे हैं। तरस कहीये अपने उन मासूम बच्चों पर जो जो आपकी शौक के शिकार हो रहे हैं। जरा गौर कीजिये अगर कल आपका बच्चा होठों में सिगरेट दबाये ये गुनगुनाये तो आप क्या करेंगे?

हर फ़िक्र को धुँए में उडाता चला गया ०००००००००००००००।

इरादा बदला या अभी भी ये शौक जिन्दा रखेंगे। या सिगरेट छोड़ कर अपने बच्चों को जिन्दगी का गिफ्ट देंगे।

कल ४ जुले २००८ को मेरे पास पुणे महाराष्ट्र से एक पाँच साल की बच्ची का फोन आया ००००००० मेरे पापा भुत सिगरेट पीतें हैं अपने दो कमरों के किराये के मकान हर कोने से मुझे सिगरेट की बदबू आती है। में घर छोड़ देना चाहती हूँ प्लीज मेरे पापा के कुछ करो ना.... अगर में इस बच्ची के पापा की सिगरेट छूटा पाता तो शायद... लेकिन आप से कहूँगा प्लीज आपके बच्चे आप से परेशान ना हों इसके लिए छोड़ दे।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

मेरा बच्चा............. ये कैसा प्यार!

पहले महिला से पुरूष बना और फ़िर दिया एक बच्चे को जन्म। इसे क्या कहें? चमत्कार या फ़िर पागलपन?
आज जब भारत में माएं बच्चो को जनम देकर मार रही हैं या फ़िर नवजात शिशु को नहर में बहा देने से गुरेज नहीं कर रही हैं वहाँ अमेरिका में ऐसा वात्सल्य वास्तव में अपने आप में एक मिशाल साबित हो सकता है। थॉमस बिटी ने 20 वर्ष की आयु में अपना लिंग परिवर्तन करवा लिया था। अमरीका में थॉमस बिटी नाम के एक पुरुष ने स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया है। थॉमस पैदाइशी तौर पर एक महिला हैं जो सर्जरी के जरिए अपना लिंग परिवर्तन करवा कर पुरुष बन गई थीं। थॉमस बिटी ने ऑपरेशन के बाद अपने सीने की ग्रंथियों को हटवाकर पुरुषों की तरह सपाट करवा लिया था, लेकिन अपने अंदरूनी अंगों को नहीं बदलवाया था। अमरीकी मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार ऑरेगन के बेंड शहर स्थित एक अस्पताल में थॉमस बिटी और उनकी नवजात बच्ची दोनों स्वस्थ हैं। एक अनाम पिता के वीर्य से थॉमस बिटी ने गर्भधारण किया था। बेंड स्थित सेंट चार्ल्स मेडिकल सेंटर के सूत्रों के अनुसार बिटी ने रविवार को प्राकृतिक रूप से बच्ची को जन्म दिया। वहीं कुछ अन्य ख़बरों में बताया गया है कि बिटी ने ऑपरेशन के बाद बच्ची को जन्म दिया है। बिटी ने अप्रैल में एक टीवी चैट शो में इस बात की घोषणा की थी कि वह गर्भवती हैं. जिसके बाद वह पूरी दुनिया में ख़बरों का केंद्र बन गए थे.
इस शो में उन्होंने कहा था कि उनका सपना है कि एक दिन वह एक बच्चे को जन्म दें।
थॉमस के अनुसार मैंने अपने जननांगों के साथ कुछ नहीं किया था, क्योंकि मैं एक बच्चा चाहता था।
बिटी ने अपना जीवन हवाई में ट्रेसी लागोंदिन के नाम से शुरू किया था, वहाँ उन्होंने किशोरियों की एक सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और फ़ाइनल तक पहुँचीं थीं। 'पीपुल' नाम की पत्रिका से बातचीत में उन्होंने कहा कि 20 साल की उम्र में उन्होंने अपना लिंग परिवर्तन करवा लिया और एक पुरुष के रूप में रहने लगे। लेकिन शायद एक औरत की माँ बनने की हसरत को वो अपने दिलो दिमाग से नही मिटा सकी।
वैसे एक पुरूष के तौर पर उन्होंने नैंसी नाम की एक महिला से शादी भी की। उनकी यह शादी पाँच साल तक चली। भारतीय हाई फाई माएं भी अपनी कोख से बच्चे को जन्म देना अपनी हसरतों में शामिल कर लें।



आशुतोष पाण्डेय

मंगलवार, 1 जुलाई 2008

सिगरेट से आपके बच्चे की जान को खतरा

(इन्साईट स्टोरी) अगर आप धुम्रपान करने के शौकीन हैं और हर बार इसके लिए घर से बाहर यह सोचकर निकल जाते हैं कि इससे आपके बच्चे सुरक्षित रहेंगे तो यह ख्याल गलत है। आपके बच्चों को उस हालत में भी 'पैसिव स्मोकिंग' का खतरा बना रहता है और वे इसके दुष्प्रभाव झेलते हैं। आस्ट्रेलिया में हुए एक नए अध्ययन से सामने आया है कि पैसिव स्मोकिंग (इसे सेकेण्ड हैण्ड स्मोकिंग भी कहते हैं) से आपके बच्चे सिर्फ इसलिए बचे नहीं रह सकते कि आप बाहर जाकर धुम्रपान कर रहे हैं। इस बारे में कर्टिन तकनीकी विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने धुम्रपान करने वाले अभिभावकों के सांस से निकलने वाले कणों की जाँच की और पाया कि धुम्रपान करने का प्रभाव उनकी सांसों में 24 घंटे बाद भी रहता है। यह प्रभाव 4 से 9 साल के बच्चों के स्वास्थ्य पर काफी विपरीत प्रभाव डाल सकता है। जाँच में मिला कि जो अभिभावक घर से बाहर जाकर भी धुम्रपान करते हैं उनके घरों में सांस लेने वाली हवा में खतरनाक स्तर तक निकोटीन पाया गया जो कि काफी गंभीर बात है।इस शोध को करने वाले वैज्ञानिकों में अग्रणी रहे डॉ. क्रासी रूमचेव कहते हैं कि इस अध्ययन से अब साफ हो गया है कि अभिभावकों को सचेत हो जाना चाहिए और बच्चों की सुरक्षा की खातिर घर के बाहर भी धुम्रपान करने से बचना चाहिए। अभिभावक अगर इस लत से पीछा छुड़ा लें तो इससे अच्छी तो बात ही नहीं होगी। वे बताते हैं कि बाहर से धुम्रपान करने के बाद घर के अंदर सिर्फ सांसें लेने से ही सब कुछ विषैला हो सकता है क्योंकि ये कण कपड़ों में भी चिपक सकते हैं। उल्लेखनीय है कि यह शोध 'इंडोर एयर' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

(अंजू 'स्नेहा')

मंगल पर बर्फ


अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी - नासा का मानना है कि उसके अंतरिक्ष यान फ़ीनिक्स ने मंगल ग्रह पर बर्फ़ होने का ठोस दिया है। यान को मंगल पर एक गड्ढ़े की सतह खोदने पर कोई चमकीली चीज़ मिली जो मंगल ग्रह के हिसाब से चार दिन बाद ग़ायब हो गई। नासा का अनुमान है कि चमकीली चीज़ बर्फ़ थी जो चार दिनों में भाप बनकर उड़ गई। एक दूसरे गड्ढ़े को खोदने के बाद यान को उसी गहराई पर कुछ ठोस सतह मिली। इससे इस बात को बल मिलता है कि मंगल ग्रह की सतह के नीचे स्थायी रूप से जमा हुआ पानी है।
टस्कन के एरिज़ोना विश्वविद्यालय में आ रही सूचनाओं का अध्ययन कर रहे फ़ीनिक्स यान के प्रमुख शोधकर्ता डा0 पीटर स्मिथ कहते हैं, "इसे बर्फ़ ही होना चाहिए। कुछ दिन बीतने के बाद ही ये छोटे-छोटे टुकड़े पूरी तरह से गायब हो जा रहे हैं। यह ठोस सबूत है कि ये बर्फ हैं"। उनका कहना है, "कुछ सवाल हैं कि क्या यह चमकीली चीज़ नमक हो सकती है लेकिन नमक ऐसा नहीं कर सकता।"
फ़ीनिक्स ने मंगल पर उतरने के बीसवें दिन एक गड्ढ़े को खोदकर बर्फ़ के इन टुकड़ों को खोजा और उनकी तस्वीरें ली। चार दिन बाद यान ने दोबारा उसी जगह की तस्वीर ली लेकिन तब तक कुछ टुकड़ें ग़ायब हो चुके थे। इससे पहले बर्फ़ के मिलने की उम्मीदें कम होती जा रही थीं क्योंकि मंगल की सतह पर से ली गई मिट्टी में पानी का कोई नामो-निशान तक नहीं मिला था। मंगल पर बर्फ़ होने के सबूत इससे पहले भी जुटाए गए थे। लेकिन फ़ीनिक्स के इस अभियान का असल मक़सद उन साक्ष्यों का पता लगाना है जिससे इस ग्रह के ध्रुवीय इलाक़ों में बसने के विचारों को ताक़त मिले। देखना यह है की आख़िर कब तक मंगल ग्रह का रहस्य खुलकर सामने
आएगा।


आशुतोष पाण्डेय
संपादक इंसाईट स्टोरी

सोमवार, 9 जून 2008

जनता के साथ फिर ठगी

भारत सरकार द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य में वृद्धि से जनता कर बीच प्रतिक्रिया हुई है. सरकार जहाँ इसे अपनी मजबूरी बता रही है, वहीं विपक्षी इसे पेट्रो कंपनियों के दवाब में आकर उठाया गया कदम बता रही है. पिछले कुछ महीनों में अंतराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में भारी इजाफा हुआ है इस कारण महंगाई अपने चरम स्तर पर पहुच गयी है. महंगाई के साथ खाद्यान संकट सारे विश्व में चिंता का बनता जा रहा है. यह एक ऐसा संकट है जिसका तुरत फुरत कोई इलाज नही ढूढा जा सकता है. ऐसी हालत में सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढाना नाजायज नही लगता है. लेकिन इस वृद्धि के बाद यूं. पी.ए. चेयर पर्सन सोनिया गांधी कांग्रेस शासित राज्यों को बिक्री कर में छूट देने की नसीहत देना किसी के पल्ले नही पड़ रहा है. उनका तर्क है की इससे कीमतें कम होंगी लेकिन इसके एवज में राज्यों को जो राजस्व घटा बिक्री कर ओर वैट के रूप में होगा उसकी भरपाई कहाँ से होगी इसके लिए सोनिया जी के पास कोई जवाब नही है. अगर राज्य इसी कोई पहल करतें है तो उन्हें प्रतिदिन करोडों का नुकसान उठाना पड़ेगा ओर ये सरकारें इसकी वसूली फिर से जनता से ही करेंगी. सोनिया गांधी का अर्थशास्त्र शायद कुछ कमजोर हो लेकिन अन्य राजनीतिज्ञों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती थी की वे सोनिया के इस तुगलकी फैसले को मानते पर वोटों के लिए मोहताज भारत के सभी नेता कमोबेश सोनिया गांधी जैसा नजरिया रखतें है ओर इस देश की १०० करोड़ जनता भी हर बार नेताओं के इस नजरिये की शिकार हो जाती है।
आशुतोष पांडेय
सम्पादक इनसाईट स्टोरी

रविवार, 25 मई 2008

E- गवर्नेस कितनी सच कितनी झूठ

E- गवर्नेस का दवा करने वाली उत्तराखंड सरकार की अधिकांश वेब साईट्स को खोलने पर यह संदेश मिलता है।
On the Order of Government of Uttarakhand the Website of this Department has been temporarily withdrawn from the Uttara portal.
It will be restored as soon data update is received from the concerned department.
Inconvenience to users is regretted.
- Portal Administrator, Uttara Portal

उत्तराखण्ड शासन के आदेशानुसार इस विभाग की वेबसाईट उत्तरा पोर्टल से अभी हटा दी गई है ।
विभाग से अपडेट डाटा मिलते ही पुन: स्थापित कर दी जाएगी ।
असुविधा के लिए खेद है ।
- प्रशासक, उत्तरा पोर्टल
देखिए
(आशुतोष पाण्डेय)
संपादक
इनसाईट स्टोरी

बुधवार, 21 मई 2008

मिश्रित भ्रूण शोध का रास्ता साफ़

मानव-पशु के मिश्रित भ्रूण (पशु के गर्भ में विकसित मानव भ्रूण) को लेकर ब्रितानी संसद में हुए मतदान में इस पर प्रतिबंध की वकालत करने वाले पक्ष की हार हुई है. मंत्रिमंडल के कैथोलिक मंत्रियों रूथ केली, डेस ब्राउन और पॉल मरफ़ी ने इस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में मतदान किया था जबकि प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन और टोरी नेता डेविड कैमरून ने इसका विरोध किया था. गंभीर रूप से बीमार लोगों को बचाने के लिए 'सेवियर सिबलिंग्स' (यानी किसी के उपचार के लिए उसके ही मातापिता से तैयार भ्रूण) के निर्माण पर प्रतिबंध की कोशिश भी 342 के मुक़ाबले 163 मतों से परास्त हो गई.
संसद में 'ह्यूमन फर्टिलाइज़ेशन एंड एंब्रयोलॉजी बिल' के संबंध में गंभीर बहस हुई जिसका लक्ष्य 1990 से चल रहे पुराने क़ानून को विज्ञान में हुई उन्नति के अनुसार बदलना था.
ब्राउन और कैमरून ने पार्किंसंस, अल्ज़ाइमर्स और कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए संकर भ्रूण के प्रयोग का समर्थन किया. मानव भ्रूण का प्रयोग किये जाने वाले हर शोध के लिए 'ह्यूमन फ़र्टिलाइज़ेशन एंड एंब्रयोलॉजी अथॉरिटी' यानी एचएफ़ईए को संतुष्ट करना होगा कि यह इस शोध के लिए आवश्यक है
विदेश विभाग के मंत्री विलियम हेग और गृह विभाग के मंत्री डेविड डेविस समेत टोरी शैडो मंत्रिमंडल के अधिकतर लोगों ने संकर भ्रूण को प्रतिबंधित करने के प्रयास को समर्थन दिया. संकर और मिश्रित भ्रूण को बनाने के ख़िलाफ़ लड़ाई का नेतृत्व करने वाले पूर्व मंत्री एडवर्ड ली ने कहा कि यह नैतिक रूप से ग़लत और स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि अब तक इस दावे के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि इन संकर भ्रूणों का उपयोग पार्किंसंस और अल्ज़ाइमर्स जैसी बीमारियों में किया जा सकता है. यह क़ानून संकर या मिश्रित भ्रूण का प्रयोग कर नियमित रूप से किये जाने वाले उन शोधों की अनुमति देगा जहाँ मानव कोशिकाओं को पशु के गर्भ में प्रत्यारोपित कर विकसित किया जाता है.
इस प्रक्रिया से बने भ्रूण को 14 दिन तक रखा जाता है ताकि इससे बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग की जाने वाला स्टेम सेल विकसित किए जा सकें. स्वास्थ्य मंत्री डाउन प्रिमेरोलो ने कहा कि मानव भ्रूण का प्रयोग किये जाने वाले हर शोध के लिए 'ह्यूमन फर्टिलाइज़ेशन एंड एंब्रयोलॉजी अथॉरिटी' यानी एचएफ़ईए को संतुष्ट करना होगा कि यह इस शोध के लिए आवश्यक है. उन्होंने कहा कि कोई मिश्रित भ्रूण किसी महिला या पशु में प्रत्यारोपित नहीं किया जाएगा. हम कैसे मानें कि नियम कानून काफ़ी हैं. हम तो यह मानते हैं कि ऐसा होना बहुत मुश्किल है इसलिए इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए
लेबर पार्टी के पूर्व मंत्री सर गेराल्ड कॉफ़मैन इस विरोध से सहमत हैं. वे कहते हैं, "अगर संकर भ्रूण बनाने की अनुमति दे दी जाए तो आप अगली बार और किसी बात की अनुमति माँगने लगेंगे. आपको इसका कोई अंदाज़ा नहीं है कि यह आपको कहाँ ले जाएगा." लिबरल डेमोक्रेट इवान हैरिस ने उन लोगों की आलोचना की जिन्होंने कहा था कि संकर भ्रूण अतिमानवीय हैं. उन्होंने कहा, "नैतिक रूप से इस पर सहमति हो चुकी है कि अधिक जीवन क्षमता वाले मानव भ्रूण का उपयोग करने के बाद उसे नष्ट कर दिया जाए तो कम जीवन क्षमता वाले मिश्रित भ्रूण को बनाना कहाँ तक उचित है."
संसद में एक अलग बहस में मानव कोशिका को पशु के वीर्य में या पशुओं के अंडाणु में मानव शुक्राणु मिलाकर बनाए जाने वाले संकर भ्रूण के निर्माण पर भी प्रतिबंध लगाए जाने के प्रयास को भी 63 मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह टोरी पार्टी के डेविड बरोज़ की गंभीर रूप से बीमार बच्चों के उपचार के लिए 'सेवियर सिबलिंग्ज़' के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की भी मतदान में हार हुई.

(आशुतोष पाण्डेय)

मंगलवार, 15 अप्रैल 2008

ब्रा का सही चयन जरूरी है

अगर महिलाएँ सही आकार की ब्रा का चयन करें तो उन्हें कई तरह की परेशानियों से निजात मिल सकती है. लंदन के एक अस्पताल का कहना है कि अस्पतालों में 'ब्रा फिटिंग क्लीनिक' खोल दिए जाएँ तो उन हज़ारों महिलाओं को फ़ायदा होगा जिन्हें अपने स्तन का आकार कम करने के लिए सर्जरी करानी पड़ती है. ये अस्पताल ब्रा चयन का सही तरीक़ा भी बताता है. इसका कहना है कि अब तक जितनी महिलाएँ अस्पताल के इस विभाग में आई हैं, उनमें से कोई भी सही आकार का ब्रा नहीं पहन रही थी. डॉक्टरों के मुताबिक अगर ब्रा सही आकार की ना हों तो गले, पीठ और कंधों में दर्द हो सकता है और ये इतना बढ़ सकता है कि सर्जरी करानी पड़ जाए.
एक वरिष्ठ स्तन सर्जन का कहना है कि आम तौर पर महिलाएँ ज़रूरत से बड़े आकार की ब्रा पहनती हैं. ब्रिटेन में अक़्सर बड़े आकार के स्तनों से परेशान महिलाएँ सर्जरी कराना चाहती हैं और कुछ इलाक़ों में तो यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना का हिस्सा है जिसके तहत पैसे न के बराबर लगते हैं.
इसके बावजूद महिलाएँ ख़ुद हज़ारों पाउंड ख़र्च करके भी स्तन ऑपरेशन करवाती हैं. एक अनुमान के मुताबिक ब्रिटेन में हर साल लगभग दस हज़ार महिलाएँ स्तन का आकार छोटा करने के लिए सर्जरी कराती हैं. हालाँकि लंदन के रॉयल फ़्री अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉक्टर एलेक्स क्लार्क का कहना है कि ये पैसे की बर्बादी है और ज़रूरत है तो सिर्फ़ सही आकार की ब्रा पहनने की।
आशुतोष पाण्डेय

सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

सेलफोन का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर का एक कारण

लंदन। सेलफोन के इस्तेमाल को ब्रेन ट्यूमर का एक कारण पहले ही बताया जा चुका है लेकिन अब एक नवीन अध्ययन सामने आया है जिसके मुताबिक मोबाइल से निकलने वाला विकिरण मानव त्वचा को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
यह विकिरण कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोबाइल पर ज्यादा बात करने से आपकी त्वचा अपनी रंगत भी खो सकती है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए फिनलैंड के अनुसंधानकर्ताओं के एक दल ने बाकायदा अध्ययन किया। दल ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि मोबाइल फोन से उत्सर्जित विकिरण के संपर्क में आने वाली त्वचा की जीवित कोशिकाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। यह निष्कर्ष बीएमसी जीनोमिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
दल के एक प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक मोबाइल फोन के विकिरण से कुछ जैविक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। यदि परिवर्तन की प्रकृति कम हो तब भी जैविक प्रभाव पैदा होते हैं।
अनुसंधान दल ने एक प्रयोग किया। प्रयोग के तहत दस लोगों की त्वचा पर एक घंटे तक जीएसएम सिग्नल छोड़े गए। इसके बाद त्वचा का अध्ययन किया गया। दल ने त्वचा के करीब 580 प्रोटीनों का विश्लेषण किया और पाया कि जीएसएम सिग्नलों के असर से आठ तरह के प्रोटीन बुरी तरह प्रभावित हुए।
प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि मोबाइल फोन के विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर कोई अन्य प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि दल के अनुसंधान का उद्देश्य मोबाइल विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की पड़ताल करना नहीं था। बल्कि दल केवल यह जानना चाहता था कि इस विकिरण का मानव की त्वचा पर क्या असर पड़ता है।
आशुतोष पाण्डेय
लंदन। सेलफोन के इस्तेमाल को ब्रेन ट्यूमर का एक कारण पहले ही बताया जा चुका है लेकिन अब एक नवीन अध्ययन सामने आया है जिसके मुताबिक मोबाइल से निकलने वाला विकिरण मानव त्वचा को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
यह विकिरण कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोबाइल पर ज्यादा बात करने से आपकी त्वचा अपनी रंगत भी खो सकती है। इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए फिनलैंड के अनुसंधानकर्ताओं के एक दल ने बाकायदा अध्ययन किया। दल ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि मोबाइल फोन से उत्सर्जित विकिरण के संपर्क में आने वाली त्वचा की जीवित कोशिकाएं बुरी तरह से प्रभावित होती हैं। यह निष्कर्ष बीएमसी जीनोमिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
दल के एक प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक मोबाइल फोन के विकिरण से कुछ जैविक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। यदि परिवर्तन की प्रकृति कम हो तब भी जैविक प्रभाव पैदा होते हैं।
अनुसंधान दल ने एक प्रयोग किया। प्रयोग के तहत दस लोगों की त्वचा पर एक घंटे तक जीएसएम सिग्नल छोड़े गए। इसके बाद त्वचा का अध्ययन किया गया। दल ने त्वचा के करीब 580 प्रोटीनों का विश्लेषण किया और पाया कि जीएसएम सिग्नलों के असर से आठ तरह के प्रोटीन बुरी तरह प्रभावित हुए।
प्रमुख अनुसंधानकर्ता के मुताबिक अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि मोबाइल फोन के विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर कोई अन्य प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि दल के अनुसंधान का उद्देश्य मोबाइल विकिरण से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर की पड़ताल करना नहीं था। बल्कि दल केवल यह जानना चाहता था कि इस विकिरण का मानव की त्वचा पर क्या असर पड़ता है।
आशुतोष पाण्डेय

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

मोटापा एक बड़ी चुनौती


ब्रिटेन के एक वरिष्ठ डाइटिशियन का कहना है कि लोगों में मोटापे की समस्या जलवायु परिवर्तन की समस्या से कम गंभीर नहीं है। उन्होंने इसके समाधान के लिए तत्परता से क़दम उठाने और दुनिया भर के नेताओं से समान कार्यनीति पर सहमति क़ायम करने की अपील की है। अंतरराष्ट्रीय मोटापा कार्यबल के अध्यक्ष और लंदन में 'स्कूल ऑफ़ हाईजीन एडं ट्रॉपिकल' के प्रोफ़ेसर फ़िलिप जेम्स ने कहा कि मोटापा एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. उन्होंने कहा कि विकल्पों की परवाह किए बग़ैर इससे निपटने के लिए शीघ्र तैयारी की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि इस पर काबू पाने के लिए सभी को स्वास्थ्यवर्धक भोजन मुहैया कराना ज़रूरी है और वो चाहते हैं कि दुनिया भर के नेता इस बारे में एक वैश्विक समझौते पर सहमत हों. बोस्टन में अमरीकी एसोसिएशन फ़ॉर द एडवांसमेंट ऑफ़ साइंस (एएएएस) की वार्षिक बैठक में जेम्स ने कहा, "यह एक सामुदायिक महामारी है।" उन्होंने कहा, "औद्योगिक और व्यापारिक विकास की वजह से आए परिवर्तनों के कारण शारीरिक श्रम की आवश्यकता कम हुई. अब बड़े उद्योग अपने फ़ायदे के उद्देश्य से खाद्य और पेय पदार्थों के ज़रिए बच्चों को निशाना बना रहे हैं."
उन्होंने कहा," इसे बदलना होगा और ये तब तक संभव नहीं होगा जब तक सरकार की ओर से कोई सुसंगत कार्यनीति नहीं होगी. सवाल है कि क्या हमारे पास इस मसले पर राजनीतिक इच्छाशक्ति है?"
प्रोफ़ेसर जेम्स ने कहा कि खाद्य पदार्थों की लेबलिंग इस तरह की होनी चाहिए जिससे उपभोक्ता उसमें मौजूद वसा, चीनी और लवण तत्वों का फ़ौरन अनुमान लगा सके. उनके मुताबिक विश्व के 10 प्रतिशत बच्चे या तो मोटापे की बीमारी से ग्रस्त हैं या ज़्यादा वज़न के हैं और इस संख्या के लगभग दोगुने बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. उन्होने कहा "बड़ी संख्या में किए गए विश्लेषण दिखाते हैं कि हम बच्चों के पोषण और उचित रख-रखाव पर पूरा ध्यान नहीं दे रहे है."
नए आँकड़ों के अनुसार सात से 12 साल के ज़्यादा भार वाले बच्चे ह्रदय रोगों और ऐसी ही अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार होते हैं और उनकी असमय मौत हो जाती है. बोस्टन में संपन्न एएए की बैठक में एक अन्य विशेषज्ञ प्रोफ़ैसर रेना विंग ने इस विषय में किए गए एक शोध परिणाम को पेश किया.
मोटापे से निपटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े बदलाव की ज़रूरत है
उन्होंने कहा कि मोटापे से निपटने के लिए भोजन और व्यायाम संबंधित आदतों में बड़े पैमाने पर बदलाव की ज़रूरत है। उन्होंने क़रीब पाँच हज़ार ऐसे पुरुषों और महिलाओं पर अध्ययन किया जिन्होंने अपना वज़न तीस किलो तक घटाया है और छः महीनों तक यही वज़न बरक़रार रखा यानी वज़न बढ़ने नहीं दिया. उनके मुताबिक इन लोगों ने अपनी दिनचर्या में बड़े परिवर्तन किए हैं जिनमें एक दिन में 60 से 90 मिनट का व्यायाम शामिल है। उनका कहना है कि हालाँकि पुरानी आदतों की वजह से मोटापे की महामारी पर क़ाबू पाना उतना आसान नहीं है। इससे निजात पाने के लिए मज़बूत इच्छाशक्ति की ज़रूरत है.

आशुतोष पाण्डेय

रविवार, 10 फ़रवरी 2008

एक अनोखा रिकार्ड भी है सचिन के नाम

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी बल्लेबाज़ी का धाक जमाने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ब्रिसबेन वनडे में बड़ी उम्मीद लेकर उतरे थे। उन्हें भी इसका अंदाज़ा नहीं होगा कि वे एक ऐसे रिकॉर्डबुक में नाम दर्ज कराने जा रहे हैं, जिस पर उन्हें कभी नाज़ नहीं हो पाएगा। त्रिकोणीय सिरीज़ के पहले मैच में भारत का मुक़ाबला था ऑस्ट्रेलिया से। अपने पुराने साथी वीरेंदर सहवाग के साथ सलामी बल्लेबाज़ के रूप में उतरे सचिन तेंदुलकर शुरू में अपने लय-ताल में नज़र नहीं आए. ऐसे समय जब लग रहा था कि उनकी नज़रें अब जम रही हैं, वे आउट हो गए. आउट भी हुए तो इस तरह जिस पर उन्हें शायद सबसे ज़्यादा हताशा और निराशा हुई होगी. ब्रेट ली की एक गेंद पर मास्टर ब्लास्ट बैक फ़ुट पर आए और रक्षात्मक स्ट्रोक लगाकर एक रन के लिए भागे. अभी वे आधे रास्ते में ही थे तो स्लिप में खड़े ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों और विकेटकीपर एडम गिलक्रिस्ट आउट की अपील करने लगे.
ली के चेहरे पर भी ख़ुशी नज़र आई। सचिन ने पीछे मुड़कर देखा लेकिन एकबारगी तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि आख़िर हुआ क्या है?
दरअसल सचिन तेंदुलकर ब्रेट ली की गेंद पर इतना ज़्यादा बैक फ़ुट पर आ गए कि उनके पैर से स्टंप छू गया और गिल्ली गिर गई. उनका पैर इतने हल्के से स्टंप से छुआ तो सचिन को इसका एहसास भी नहीं था.
सचिन तेंदुलकर ने अंपायर से पूछा- क्या हुआ? सचिन अंपायर के पास गए और अपनी अनभिज्ञता जताई. अंपायर ने थर्ड अंपायर से पूछा और टीवी रीप्ले से पता चला कि सचिन हिट विकेट आउट हुए हैं. अपने कैरियर के इस मोड़ पर सचिन पहली बार हिट विकेट आउट हुए.
बल्लेबाज़ी के मास्टर को इस रूप में आउट होना देखना किसी को नहीं भाया. भारतीय समर्थकों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलियाई दर्शक भी एकबारगी हक्के-बक्के रह गए.
आउट होकर पवेलियन जाते समय भी सचिन की हताशा देखते बनती थी. सचिन पहली बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में हिट विकेट आउट हुए. वैसे वे तीसरे भारतीय खिलाड़ी हैं, जो वनडे क्रिकेट में हिट विकेट आउट हुआ है.
उनसे पहले नयन मोंगिया और अनिल कुंबले वनडे मैचों में हिट विकेट आउट हुए हैं. नयन मोंगिया 1995 में वसीम अकरम की गेंद पर हिट विकेट हुए थे तो अनिल कुंबले 2003 में न्यूज़ीलैंड के एंड्रयू एडम्स की गेंद पर इस तरह आउट हुए थे.
वैसे सचिन के लिए ज़्यादा निराशा की बात नहीं है। हिट विकेट आउट होने वालों में महान ब्रायन लारा और पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इंज़माम-उल-हक़ के नाम भी शुमार हैं.

अंजू 'स्नेहा'

रविवार, 27 जनवरी 2008

सिंचाई परिसंपत्ति: केंद्र के रुख से सरकार हताश

देहरादून। सिंचाई परिसंपत्तियों के बंटवारे पर केंद्र के रुख से उत्तराखंड सरकार हताश है। अलबत्ता, सरकार ने इसी महीने यूपी के साथ इस पर फिर से वार्ता का मन बनाया है। इस हेतू मुख्य सचिव खुद लखनऊ जाएंगे। इस बीच, सिंचाई मंत्रालय ने यूपी के कब्जे वाली विभाग की भूमि के सत्यापन की रिपोर्ट तलब की है। सिंचाई विभाग की करीब दस अरब रुपये की परिसंपत्तियों पर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच गतिरोध चल रहा है, पिछले दिनों सरकार ने केंद्र से इसमें हस्तक्षेप कर समाधान की गुजारिश की थी पर केंद्र के रुख से उत्तराखंड सरकार निराश है। सिंचाई मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज का पत्र हाल ही में सरकार को प्राप्त हुआ है। इसमें कहा गया कि मंत्रालय को जांच में पता चला कि गंगा प्रबंधन बोर्ड के गठन से इसका निपटारा संभव है। यह प्रक्रिया चल रही है। केंद्रीय जल आयोग ने दोनों राज्यों के साथ इस पर बैठक की है। राज्य सरकारों से इन संबंध में सूचनाएं मांगी गई हैं। संपर्क करने पर सिंचाई मंत्री मातबर सिंह कंडारी ने इसकी पुष्टि की। उनका कहना है कि केंद्र सरकार के रुख से साफ है कि गंगा प्रबंधन बोर्ड के गठन से पहले इसका निस्तारण नहीं हो सकता है। उन्होंने बताया कि १४ जनवरी को उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के स्तर से लिखा गया एक अन्य पत्र भी हाल में सरकार को प्राप्त हुआ है। इसमें बंटवारे की प्रक्रिया की अभी तक के प्रगति का उल्लेख करने के साथ ही यह भी कहा गया है कि बंटवारे वाली भूमि का भौतिक सत्यापन होने के बाद ही दोनों राज्यों के मध्य मंत्री स्तरीय बैठक का आयोजन उचित होगा।
(आशुतोष पाण्डेय )

'मंगल पर जीवन' ..................


जिस तस्वीर को आप देख रहें हैं इस तस्वीर के मिलने के बाद मंगल ग्रह पर जीवन को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है।
नासा के अंतरिक्ष यान स्पिरिट ने मंगल ग्रह की सतह से एक रहस्यमय आकृति की तस्वीर भेजी है. इस तस्वीर से मंगल ग्रह पर जीवन को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है. भेजी गई तस्वीर को बड़ा करके वेबसाइट पर लगाया गया है। इसे देखने से ऐसा लग रहा है जैसे पत्थरों के बीच कोई इंसान हो या कोई मानवीय आकृति पहाड़ से उतर रही हो। कुछ ब्लॉगरों के अनुसार मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना को खारिज करते हुए कहा है कि यह प्रकाश के कारण उत्पन्न हुआ दृष्टिभ्रम है। जबकि दूसरों का कहना है कि यह एलियन की उपस्थिति का प्रमाण है. अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के रोवर यान स्पिरिट ने 24 जनवरी 2004 को मंगल की सतह पर पहुँचने के बाद जो तस्वीरें भेजी थीं उससे जीवन की संभावना तलाश रहे लोगों को काफ़ी निराशा हुई थी. क़रीब से देखने पर यह भी एक मानव आकृति ही लगती है।ताज़ा तस्वीर के बाद इन लोगों का मानना है कि इससे उन्हें वह प्रमाण मिल गया है जिसे वे नासा की फ़ोटो फ़ाइल में तलाश रहे थे। इससे पहले यूरोप के अभियान यान मार्स एक्सप्रेस ने भी मंगल ग्रह के कुछ इलाक़ों में काफ़ी मात्रा में मीथेन गैस और पानी होने के प्रमाण भेजे थे। पानी को जीवन के लिए बहुत आवश्यक यौगिक माना जाता है और मीथेन गैस भी जैविक क्रियाओं से बनती है इसलिए इसे जीवन का संकेत माना जाता है। एजुकेशन मंत्रा के डायरेक्टर के आशुतोष पाण्डेय के अनुसार सिर्फ इस तस्वीर को देखकर यह नहीं कहा जा सकता है कि मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाएं हैं। पर इससे मिले अस्पष्ट संकेत कहीं न कहीं किसी विशेष तथ्य की ओर संकेत करतें हैं।
(अंजू )

शनिवार, 19 जनवरी 2008

लादेन के बेटे को है शांतिदूत बनने की

काहिरा: अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के बेटा उमर ओसामा बिन लादेन मुस्लिम जगत और पश्चिमी देशों के बीच 'शांतिदूत' की की भूमिका निभाना चाहते हैं। एक समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में 26 वर्षीय उमर लादेन ने यह बात कही। उन्होंने इसे इस्लाम को बचाने के लिए अल कायदा के आतंकवाद से कहीं बेहतर तरीका बताया। पिछले साल उमर ने कुछ ऐसा किया कि ब्रिटेन के टैबलायड्स में मानों तूफान उठ खड़ा हुआ। उमर ने 52 वर्षीय ब्रिटिश महिला जेन फेलिक्स ब्राउन से ब्याह रचाया और शादी के बाद उसका नाम जैना अल सबाह रखा। अब यह जोड़ा उत्तर अफ्रीका में 5000 किलोमीटर लंबी घुड़दौड़ की योजना बना रहा है, ताकि शांति की ओर लोगों का ध्यान खींचा जा सके। उमर ने बीते सप्ताह एक समाचार एजेंसी से काहिरा के शॉपिंग मॉल के कैफे में कहा कि यह पश्चिम की मन:स्थिति और विचारों को बदलने की कोशिश है। उमर की पत्नी अल सबाह अपने पति को ब्रिटेन लाने का प्रयास कर रही हैं। अल सबाह कहती हैं कि उमर सोचते हैं कि वे मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं। मुझे लगता है कि दुनिया में वह एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जो ऐसा कर सकते हैं। उमर ओसामा अल कायदा सरगना के 19 बच्चों में से एक हैं। उमर अपने पिता की चौथी संतान हैं। वह ओसामा के साथ सूडान में रहते थे। 1996 में खारतूम ने ओसामा को सूडान छोड़ने के लिए विवश कर दिया था। इसके बाद उमर अपने पिता के साथ अफगानिस्तान आ गए थे।
अंजू 'स्नेहा'

वश में हो, तो तलाक ले लेंगी ज्यादातर महिलाएं

लंदन : ज्यादातर शादीशुदा ब्रिटिश महिलाओं का वश चले तो वे अपने पति से तलाक लेना पसंद करेंगी। एक सर्वें में यह बात सामने आई है। शादीशुदा पुरुषों और महिलाओं पर सर्वे में 59 फीसदी महिलाओं ने कहा कि अगर भविष्य में आर्थिक सुरक्षा तय हो, तो तुरंत तलाक ले लेंगी। महिलाओं और पुरुषों दोनों में 10 में से एक का कहना था कि काश मैंने किसी और से शादी की होती। सर्वे के मुताबिक, आधे से ज्यादा पति अपनी शादीशुदा जिंदगी में प्यार का अभाव मानते हैं। इस सर्वे में 2000 वयस्क ब्रिटिश शामिल किए गए। इनमें करीब 30 फीसदी ने अपनी शादी को नाकाम माना और कहा कि अचानक जिंदगी में उथल-पुथल से बचने के लिए शादी के बंधन को निभा रहे हैं। महिलाओं और पुरुषों में करीब आधे ने कहा कि परिवार को बिखरने से बचाने के लिए हम साथ रह रहे हैं। 30 फीसदी पुरुषों का कहना था कि हम अपने बच्चों की खातिर साथ रह रहे हैं। 56 फीसदी लोगों ने माना कि अपने वैवाहिक रिश्तों से पूरी तरह खुश नहीं हैं। आधे से ज्यादा लोगों ने कहा कि हमने तलाक लेने पर विचार किया था। इस सर्वे का आयोजन सॉलिसिटर सेडंस ने कराया। नए साल के पहले हफ्ते में ब्रिटेन में तलाक की अर्जियों का तांता लग गया। इसके बाद यह सर्वे कराया गया। डेली मेल ऑनलाइन की रिपोर्ट में रिलेशन एक्सपर्ट्स ने लोगों को तलाक से पैदा होने वाली समस्याओं से आगाह किया है।

आशुतोष पाण्डेय

कंट्टरपंथ सार्क देशों में भी महिलाओं के लिए बड़ा खतरा

दुनिया भर में बढ़ रहा कंट्टरपंथ सार्क देशों में भी महिलाओं के लिए बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है। खासकर बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान जैसे देशों में यह बड़ी समस्या के रूप में सामने है। लिहाजा दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन [सार्क] के सभी देशों ने इसके खिलाफ लड़ने के लिए एक साझा नेटवर्क खड़ा करने का फैसला किया है।
महिला समानता और लैंगिक न्याय पर 1995 में बीजिंग में हुए सम्मेलन की अगली कड़ी के रूप में सार्क देशों की महिलाओं के विभिन्न मुद्दों पर छठे दक्षिण एशिया मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शनिवार को सर्वसम्मति से यह फैसला किया गया। यूनीफेम के दक्षिण एशिया सबरीजनल आफिस और भारत के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से आयोजित इस सम्मेलन में सार्क देशों के सभी सदस्यों ने 'इंडिया फारवर्ड मूविंग स्ट्रेटजीज जेंडर इक्वलिटी-2008' घोषणापत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं। जिसके तहत सार्क देशों की महिलाओं के लिए बनी कार्ययोजना पर अगले दो वर्र्षो में अमली कार्रवाई की जाएगी।
सम्मेलन के बाद यूनीफेम की क्षेत्रीय प्रमुख चांदनी जोशी ने कहा कि सार्क देशों की महिलाओं के लिए भी कंट्टरपंथ बड़े खतरे के रूप में उभरा है। उन्हें भी इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल व दक्षिण एशिया के दूसरे देश भी इससे अछूते नहीं हैं। इसलिए सार्क देशों के बीच साझा नेटवर्क बनाने का निर्णय लिया गया है, जो खास तौर से महिलाओं को उनके अधिकार सुनिश्चित कराएगा। इसके साथ ही समानता के अधिकार के मद्देनजर सार्क देशों की महिलाओं की नागरिकता के अधिकार पर उनके बच्चों व पतियों को भी नागरिकता दिए जाने पर सहमति बनी है। सम्मेलन में यह सवाल इसलिए उठा कि अभी सिर्फ पति की नागरिकता के आधार पर उसकी पत्नी व बच्चों को नागरिकता मिलने की बात होती है। सम्मेलन में सार्क देशों के बीच जेंडर डाटाबेस भी बनाने पर भी सहमति बनी है।
इसके अलावा महिलाओं के साथ भेदभाव को खत्म करने के लिए कानून बनाने, घरेलू हिंसा रोकने के कानून को प्रभावी बनाने, महिलाओं-बच्चों की तस्करी रोकने व प्रभावितों के पुनर्वास, संपत्तिव भूमि को नियंत्रित करने का अधिकार देने, नीतिगत मामलों व निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने जैसे कई मामलों में भी सभी सदस्य देशों के बीच सहमति बनी है। सम्मेलन में भारत, बांग्लादेश, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान और मालद्वीव के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रस्तुति: आशुतोष पाण्डेय

रविवार, 13 जनवरी 2008

इंटरपोल अध्यक्ष ने पद से इस्तीफ़ा दिया


अंतरराष्ट्रीय पुलिस एजेंसी इंटरपोल के अध्यक्ष जैकी सेलेबी ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.
जैकी सेलेबी को शनिवार को दक्षिण अफ़्रीका पुलिस के राष्ट्रीय आयुक्त के पद से निलंबित कर दिया गया था. इसके बाद ही उन्होंने इंटरपोल के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया। दक्षिण अफ़्रीका में अभियोजन पक्ष ने कहा है कि जैकी सेलेबी पर भ्रष्ट्राचार का मामला चलाया जाएगा हालांकि ये नहीं बताया गया कि कब। आरोप है कि जैकी सेलेबी ने एक अपराधी से कथित तौर पर एक लाख 70 हज़ार डॉलर लिए। लेकिन वे इस बात से इनकार कर रहे हैं कि उनके आपराधिक तत्वों से कोई रिश्ता था।
अपने त्याग पत्र में जैकी सेलेबी ने लिखा है, "मैं इंटरपोल के हितों को ध्यान में रखते हुए इस्तीफ़ा दे रहा हूँ।" फ़्रांस स्थित इंटरपोल के महासचिव रॉनल्ड के नोबल ने संगठन के साथ जैकी सेलेबी के कामकाज की तारीफ़ की। उन्होने कहा कि भ्रष्ट्राचार के आरोपों का इंटरपोल के अध्यक्ष के तौर पर जैकी सेलेबी के कार्यकाल से कोई लेना-देना नहीं है। रोनल्ड नोबल ने कहा कि भ्रष्ट्राचार उन आरोपों में से एक है जो किसी भी पुलिस अधिकारी पर लगाया जा सकता है। दक्षिण अफ़्रीका के मुख्य अभियोजक का आरोप है कि सेलेबी का बिजनेस की दुनिया से जुड़े ग्लेन अगलियोटी के साथ संबंध थे जिन पर हत्या का आरोप है। अंतराष्ट्रीय अपराधियों के खिलाफ काम करने वाली संस्था के चीफ पर लगे ये आरोप काफी मायने रखतें हैं।
आशुतोष पाण्डेय

मंगलवार, 8 जनवरी 2008

जम्मू कश्मीर में अलग मुद्रा चलाने की मांग पर भा ज पा का बबाल


जम्मू-कश्मीर में देश से अलग मुद्रा चलाने की मांग करने वाले राज्य के वित्तमंत्री तारिक हामिद करा को भाजपा ने तत्काल प्रभाव से मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग की है। मुख्य विपक्षी दल ने इसे अलगाववाद का चरम बताते हुए कांग्रेस को भी इस अपराध का दोषी करार दिया। साथ ही इस विषय में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की चुप्पी पर भी सवाल उठाया।
भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि मंत्री की यह मांग न सिर्फ अलगाववादी है, बल्कि आतंकवाद को भी पोषित करने वाली है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कांग्रेस और केन्द्र सरकार इतने संवेदनशील मुद्दे पर भी चुप्पी साधे हुए है। रूडी ने यूरोपीय देशों की एक मुद्रा यूरो चलाने का हवाला देते हुए कहा कि 'पूरी दुनिया के कई देश जब राज्य और अपने बीच सामान्य मुद्रा लाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं भारत के गणराज्य में एक प्रांत अलग मुद्रा चलाने की मांग कर रहा है। यह भारतीय संविधान की भावना के सर्वथा विरुद्ध है और ऐसी अनर्थकारी मांग पहली बार की गई है।'
भाजपा प्रवक्ता ने याद दिलाया कि जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर में 'दो संविधान, दो विधान, दो निशान और दो प्रधान' का विरोध करते हुए शहादत दी थी। उन्होंने कहा, देश से अलग मुद्रा चलाने की मांग उससे भी ज्यादा विभाजनकारी है। रूडी ने ऐसी मांग करने वाले वित्तमंत्री को तुरंत मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के साथ प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष से इस विषय में मुंह खोलने की मांग की।
उधर, पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह को शहीद का दर्जा देने की भी भाजपा ने आलोचना की। रूडी ने कहा कि एसजीपीसी का यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है और पार्टी को इस तरह की भाषा और कृत्य कतई स्वीकार्य नहीं है।

सोमवार, 7 जनवरी 2008

जेमा आर्टर्टन बनी नई 'बॉंन्ड गर्ल'


जेम्स बॉंड की फ़िल्मों में बॉंन्ड की हीरोइन कौन बनती है, ये सवाल सदा से ही आपको रोमांचित करता रहा है। इसका इंतज़ार सभी को रहता है लेकिन अब लोगों का इंतज़ार ख़त्म हुआ क्योंकि नई 'बॉंन्ड गर्ल' का चुनाव हो गया है। अख़बार 'द हॉलीवुड रिपोर्टर' की मानें तो ट्रिनियन की स्टार जेमा आर्टर्टन को नई बॉंन्ड फ़िल्म में हीरोइन का रोल मिला है. बॉंन्ड सीरीज़ की नई फ़िल्म का नाम फिलहाल 'बॉंन्ड-22' रखा गया है और इसमें 21 वर्षीय जेमा हीरोइन होंगी जिसके चरित्र का नाम होगा फील्ड्स। इस बारे में और कोई जानकारी नहीं मिल सकी है लेकिन फिल्म की प्रोडक्शन कंपनी डैनज़ैक प्रोडक्शन्स की मानें तो जेमा को ' अच्छी खासी' भूमिका मिली है. इस फ़िल्म के लिए शूटिंग शुरु हो चुकी है जो इस साल नवंबर में रिलीज़ हो सकती है। जेमा ने हाल में रुपर्ट एवरेट के साथ एक फिल्म की है जो बोर्डिंग स्कूल के बदमाश बच्चों पर आधारित है। जेमा को बॉंन्ड गर्ल की भूमिका मिलना बॉंन्ड प्रोडक्शन की परंपरा के अनुरुप है जिसके तहत वो ज़्यादातर ऐसी अभिनेत्रियों को ये भूमिकाएँ देते हैं जिनको पहले कोई बड़ी फ़िल्म नहीं मिली होती है। जेमा डेनियल क्रेग के साथ नज़र आएँगी। बॉंन्ड के तौर पर डेनियल क्रेग की यह दूसरी फ़िल्म है. बॉंन्ड की नई फिल्म इयान फ़्लेमिंग की कहानी रिसिको पर आधारित है जिसमें बॉंन्ड ड्रग्स माफ़िया का मुकाबला करेंगे। बॉंन्ड की इस फिल्म में विलेन की भूमिका फ्रेंच अभिनेता मैथ्यू अमालरिक करेंगे।


अंजू

गुरुवार, 3 जनवरी 2008

आई-स्नेक: आसान होगी सर्जरी

आई -सनेक शरीर के अंदर पहुँचकर डॉक्टरों के हाथ और आंखों का काम करेगा विशेषज्ञ ऐसा रोबोट विकसित करने में लगे हैं जिससे सर्जरी के क्षेत्र में क्रांति आ सकती है। दरअसल, इसकी मदद से शरीर के अंदरूनी हिस्सों की जटिल से जटिल सर्जरी आसान हो जाएगी विश्श्ग्यों का मानना है कि आई-स्नेक नामक यह उपकरण शरीर के अंदर पहुँचकर डॉक्टरों के हाथ और आँख का काम करेगा. इसकी मदद से डॉक्टर ऐसे जटिल ऑपरेशन को भी आसानी से अंजाम दे सकेंगे जो अब तक काफ़ी मुश्किल माने जाते हैं. लंदन के इंपीरियल कॉलेज को इसे विकसित करने के लिए 21 लाख पाउंड की राशि दी गई है। आई-स्नेक घर में इस्तेमाल होने वाले ट्यूब जैसा लचीला है। इसमें लगी विशेष मोटर, सेंसर और कैमरे डॉक्टरों को शरीर के भीतर के हिस्से देखने या पकड़ने में मदद करेंगे। यानी की इसकी मदद से दिल की जटिल बाईपास सर्जरी भी आसान हो जाएगी. शोध टीम के एक सदस्य और ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री लॉर्ड आरा डार्ज़ी ने बताया कि मरीज़ों पर इस्तेमाल करने से पहले हम इस उपकरण की प्रयोगशाला में जाँच करेंगे. सर्जरी आसान होने के साथ ही आई-स्नेक का इस्तेमाल अंतड़ियों से संबंधित बीमारी का पता लगाने में भी किया जा सकेगा। इससे एक फ़ायदा यह भी होगा कि सर्जरी में चीरफाड़ कम करनी पड़ेगी जिससे मरीज़ों को अस्पताल में कम रुकना पड़ेगा. सर्जन अभी इस विकल्प पर भी काम कर रहे हैं जिससे शरीर के ऊपरी हिस्से चमड़े पर भी कम ज़ख्म आए.
लॉर्ड डार्ज़ी का कहना है,''आई-स्नेक से सर्जरी सस्ती और कम पीड़ादायक तो होगी ही, इलाज़ में समय भी कम लगेगा और लोग जल्दी ठीक होंगे.''
वेलकम ट्रस्ट के तकीनीकी हस्तांतरण के निदेशक डॉ। टेड बानको कहते हैं, ''अब वो दिन लद गए जब ऑपरेशन थियेटर में छुरियों से सर्जरी होगी। आने वाला समय आई-स्नेक जैसे आधुनिक उपकरणों का है।''


Sangeeta

सबसे नौजवान ग्रह की खोज

वैज्ञानिकों ने सौर मंडल के बाहर एक नए ग्रह की खोज की है। यह ग्रह न केवल खोज के लिहाज से नया है, बल्कि उम्र के हिसाब से भी यह सबसे नया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज से सौर मंडल के निर्माण की गुत्थी सुलझाने में मदद मिलेगी।
नया ग्रह का नाम टीडब्ल्यू हाइड्रे रखा गया है।
इसकी खोजा जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फार एस्ट्रोफिजिक्स के वैज्ञानिकों ने की है। इसे सबसे कम उम्र का बताया जा रहा है ग्रणाओ के अनुसार यह ग्रह सिर्फ एक करोड़ साल पुराना माना जा रहा है । नए ग्रह की उम्र सौरमंडल की उम्र का मात्र 0.2 प्रतिशत है। इसे सबसे कम उम्र का ग्रह बताया जा रहा है।
हमारी पृथ्वी की उम्र लगभग 4.5 अरब वर्ष है। जबकि अब तक ज्ञात सबसे नौजवान ग्रह दस करोड़ साल पुराना था।
आकार : पृथ्वी से 3,115 गुना और हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति से लगभग 9.8 गुना ज्यादा।
स्थिति : पृथ्वी से 18 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर। यह अपने सूर्य से सिर्फ 37 लाख मील की दूरी पर है, पृथ्वी सूर्य से 9.3 करोड़ मील की दूरी पर है। यह अपनी धुरी का एक चक्कर 3.56 दिन में लगाता है।
-वैज्ञानिकों के मुताबिक नए तारों के विकसित होने के बाद टीडब्ल्यू हाइड्रे अस्तित्व में आया होगा।
-ग्रह गैस और धूल के पिंड होते हैं। किसी नए ग्रह के आसपास गैस व धूल के बादल पाए जाते हैं। जबकि इस बच्चा ग्रह की कक्षा में इनकी अनुपस्थिति वैज्ञानिकों को चौंका रही है।


आलेख: आशुतोष पाण्डेय

प्रस्तुति: अंजू