भारत सरकार द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों के मूल्य में वृद्धि से जनता कर बीच प्रतिक्रिया हुई है. सरकार जहाँ इसे अपनी मजबूरी बता रही है, वहीं विपक्षी इसे पेट्रो कंपनियों के दवाब में आकर उठाया गया कदम बता रही है. पिछले कुछ महीनों में अंतराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में भारी इजाफा हुआ है इस कारण महंगाई अपने चरम स्तर पर पहुच गयी है. महंगाई के साथ खाद्यान संकट सारे विश्व में चिंता का बनता जा रहा है. यह एक ऐसा संकट है जिसका तुरत फुरत कोई इलाज नही ढूढा जा सकता है. ऐसी हालत में सरकार द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत बढाना नाजायज नही लगता है. लेकिन इस वृद्धि के बाद यूं. पी.ए. चेयर पर्सन सोनिया गांधी कांग्रेस शासित राज्यों को बिक्री कर में छूट देने की नसीहत देना किसी के पल्ले नही पड़ रहा है. उनका तर्क है की इससे कीमतें कम होंगी लेकिन इसके एवज में राज्यों को जो राजस्व घटा बिक्री कर ओर वैट के रूप में होगा उसकी भरपाई कहाँ से होगी इसके लिए सोनिया जी के पास कोई जवाब नही है. अगर राज्य इसी कोई पहल करतें है तो उन्हें प्रतिदिन करोडों का नुकसान उठाना पड़ेगा ओर ये सरकारें इसकी वसूली फिर से जनता से ही करेंगी. सोनिया गांधी का अर्थशास्त्र शायद कुछ कमजोर हो लेकिन अन्य राजनीतिज्ञों से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती थी की वे सोनिया के इस तुगलकी फैसले को मानते पर वोटों के लिए मोहताज भारत के सभी नेता कमोबेश सोनिया गांधी जैसा नजरिया रखतें है ओर इस देश की १०० करोड़ जनता भी हर बार नेताओं के इस नजरिये की शिकार हो जाती है।
आशुतोष पांडेय
सम्पादक इनसाईट स्टोरी
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