गुरुवार, 4 अगस्त 2011

मैं दुनिया का सबसे भाग्यवान इंसान हूँ


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मैं दुनिया का सबसे भाग्यवान इंसान हूँ, ये सुनने में कम ही आता है, अभागा होने का रोना रोने वाले तो करोड़ों में मिल जायेंगे लेकिन अपने भाग्य को सराहने वाला शायद ही कोई मिले. हर छोटी से छोटी बात पर भी भाग्य को कोसना, ये तो हमारी किस्मत ही खराब थी, ये सब हमारे साथ ही होना था. धिक्कार हैं! वो लोग जो भाग्य को कोस रहे हैं. हम क्या हैं? हमारा वजूद हमारा भाग्य नहीं कर्म निश्चित करते हैं. भाग्य ही एक ऐसी चीज है जिसे इंसान खुद जैसा चाहे गढ़ ले. दुनिया मैं किसी भी सफल इंसान को लो क्या वो परेशानियों से मुक्त था? जितनी बड़ी परेशानी उतना बड़ा सौभाग्य. अगर हर इंसान सिर्फ भाग्य को ही कोसता तो जानते हैं क्या होता, अभी तक हम असभ्य ही रहे होते. दुनिया भाग्य से नहीं हाथों और इन्द्रियों के मेल से चलती है. दुर्भाग्य क्या है कोई बताये मुझे?
सौभाग्य मैं जानती हूँ. "मैं सौभाग्यशाली हूँ" की इंसान के रूप में इस धरा पर आयी हूँ, मेरे पास करियत्री प्रतिभा है; ईश्वर ने मुझे अपने अंश से सर्वश्रेष्ठ भाग दिया है. शुक्रगुजार हूँ इस चमकते सूरज के लिए, मीठी चाँदनी के लिए और उसके द्वारा दी गयी उन चंद परेशानियों के लिए जिनसे वो मेरे वजूद को परखना चाह रहा है. असल मैं जन्म के बाद एक ही चीज है जिसके लिए हमें ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए वो हैं हमें दी गयी जिम्मेदारियां जिन्हें हम दुःख या फिर दुर्भाग्य कह देतें हैं. हम क्यों भागते हैं परेशानियों से? इन्हें हल कीजिये, ये हल हो सकती हैं, आज नहीं कल इनका हल निकलेगा. आप इन्हें किसी के भरोसे ना छोड़े कम से कम भाग्य के तो कतई नहीं. क्योंकि भाग्य हमारी नकारात्मक सोच का एक ऐसा काल्पनिक बुलबुला है जिसका कोई अपना अस्तित्व होता ही नहीं है. क्यों अब भी कोई संकोच बाकी है ये कहने में कि "मैं दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान हूँ". मैं कौन हूँ जो ये कहूं की अपनी सोच बदलो. आप अपने दुर्भाग्य के साथ जितना जीना चाहें जी लें. लेकिन ये बंदी तो कभी दस्तक ही नहीं देगी दुर्भाग्य के दरवाजे. चलिए हम तो चले नई दस्तक के साथ.'मेरी दस्तक' मैं फिर आप से मिलेंगे "मैं क्यों मरूं चिंता की मौत" के साथ. अब आप लोग पढ़ सकते हैं, मेरे सारे आलेख ज्ञानपुंज पर भी. यहाँ क्लिक कर पहुँचिये खुशी के संसार में.   

(सुषमा पाण्डेय)

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