सोमवार, 9 मई 2011

हमारी उच्च शिक्षा का काला सच

एक मई २०११ को सम्पन ए आई ईईई की परीक्षा में पेपर लीक होने के बाद उसी दिन फिर परीक्षा करवाई गयी थी, पेपर कैसे लीक हुए या कराये गए, ये सवाल के बारे में बाद में बात करेंगे, अभी जो प्रमुख सवाल है वह एक योग्यता मेरिट लिस्ट के लिए दो परीक्षाएं करवाने का है, ए आई ईईई प्रबंधन ११ मई को फिर से उन छत्रों को परीक्षा देने का मौका दे रहा, जो १ मई को इससे वंचित रह गए थे, लेकिन एक मेरिट के लिए दो परीक्षाएं, ये कहीं ना कहीं छात्रों के समानता के हक़ को प्रभावित कर रहा है, इस फैसले पर रोक लगाने के लिए एनआईटी जमशेदपुर के पूर्व प्रोफेसर ए. पी. सिन्हा ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस निर्णय के विरोध में दायर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर , की है जिसमें हाईकोर्ट ने सरकार को मामले में नोटिस तो जारी किया था, लेकिन ११ मई को उसके दोबारा परीक्षा कराने के फैसले को रोकने से इंकार कर दिया था।  याचिका में मांग की गयी है कि १ मई को कराई  गयी परीक्षा को निरस्त कर नए सिरे से सभी विद्यार्थियों को सामान रूप से प्रदर्शन का मौका मिलना चाहिए, पर कई बार पेपर लीक होने के बाद ऐसी स्थितियां अक्सर पैदा होती हैं, लेकिन कोई ठोस कदम इस बाबत नहीं उठाये जातें हैं जिसके चलते, पेपर लीक होने से रोका जा सके, और बिना उच्च अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत के ये सब संभव कैसे हो सकता है, ये यक्ष प्रश्न है? 
इस समय देश में कोचिंग माफियाओं की बाढ़ सी आ गयी है, इसमें से कई तो १०० फीसदी सफलता की गारंटी देतें हैं, और कई बार प्रवेश परीक्षाओं की मेरिट देखकर लगता भी है की, दाल में कुछ काला है, इतना ही नहीं इस हद तक फिक्सिंग देखने को मिलती है की मनचाहे कालेज में एडमीशन की गारंटी तक ये कालेज दे देतें हैं. 
शिक्षा के नाम पर हो रही तमाम फिक्सिंग हर स्तर पर हर जगह मिलती है, फर्जी मार्कशीट, प्रमाण पत्र, डिग्री, क्या नहीं मिलता है, शिक्षा के इन माल्स में. इसके अलावा आज तमाम प्राइवेट कालेज भी कोई कम प्रदूषण नहीं फैला रहें हैं, पैसा दो मन चाहे कोर्स में एडमीशन लो, लाखों रूपया ऐठने वाले ये कालेज मानकों की खुले आम धज्जियां उड़ा रहें हैं, क्या ये ही है, हमारी उच्च शिक्षा का काला सच? 

(आशुतोष पाण्डेय )