शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

नागचंद्रेश्वर के मंदिर के कपाट खुले

'आपके शहर' में हमें एक खबर मध्य प्रदेश के उज्जैन से मिली है. 
उज्जैन, ऐतिहासिक नगरी उज्जैन में वर्ष में एक दिन नाग पंचमी को खुलने वाले नागचंद्रेश्वर के मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए विशेष पूजा अर्चना कर रहे हैं. प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के ऊपरी हिस्से में स्थित है, नागचंद्रेश्वर का मंदिर. इस मंदिर के कपाट वर्ष में एक दिन नागपंचमी की रात खुलते है. वर्षों से चली आ रही परंपरा के मुताबिक नागपंचमी को बुधवार की रात को 12 बजे मंदिर के कपाट खोले गए. मंदिर के कपाट खुलने के बाद से ही देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे श्रद्धालु पूजा अर्चना करने लगे हैं. कोई दूध से स्नान करा रहा है तो कोई अनुष्ठान कर रहा है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि नागचंद्रेश्वर के दर्शन मात्र से ही समस्याओं से मुक्ति मिलती है तथा मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
संभवत: यह देश का इकलौता ऐसा मंदिर है जिसके कपाट वर्ष में एक दिन के लिए खुलते हैं. यह मंदिर महाकाल मंदिर के ऊपरी हिस्से में स्थित है तथा इसके निर्माण को लेकर तरह-तरह की किंवदंतियां हैं। यह मंदिर आर्कषक है. इस मंदिर में उत्तरी दिशा की दीवार में नागदेवता की प्रतिमा बनी है. सर्प के सिंहासन पर भगवान विष्णु विराजमान है. वहीं सात सर्पो के आसन पर भगवान शिव विराजित है. यहां गणेश जी की भी प्रतिमा है. 
प्रस्तुति: इनसाईट स्टोरी 

ये आन्दोलन: ऐसा क्या है


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आज एक अहम सवाल देश के लोगों से क्या आन्दोलनों या हडतालों से देश सही दिशा में जाएगा? आज हर तरफ आन्दोलनों की बाढ़ है, जहां सारे देश में कांग्रेस के खिलाफ आन्दोलन हैं; वहीं जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है, वहां कांग्रेस आन्दोलन कर रही है. आज बैंको की हड़ताल है, रोज कहीं न कहीं हड़ताल होती है, और ये आन्दोलन किसी सेलिब्रेटी के द्वारा किया जाय तो फिर देखिये, एक जमात खड़ी हो जाती है इनके साथ भले ही उनका कुछ लेना देना हो या ना हो बस फोटो आ जाय किसी विडियो फुटेज में दिख जाएँ. आन्दोलन कैसा हो, कब हो, किसके खिलाफ हो और क्यों हो? इसके लिए क्या कोई नियम हों. कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने जब लोकायुक्त की रिपोर्ट के खिलाफ बयान दिए, या उसे चैलेन्ज किया तो कोई आन्दोलन नहीं हुआ. जब देश में एक बड़ा तबका लोकपाल के पक्ष में आन्दोलन रत है तो लोकायुक्त संतोष हेगड़े की रिपोर्ट की धज्जियां उड़ाना कैसे संभव हुआ? क्या आन्दोलन प्रायोजित भी होते हैं? शायद हाँ, शायद नहीं सिर्फ हाँ, ज्यादातर आन्दोलन प्रायोजित ही होते हैं, और उन्हें करने वालों का देशहित से कुछ लेना देना नहीं होता है. हाँ कुछ लोगों को मोहरा बना कर पेश किया जाता है, वो चाहे समाजसेवी हों, छात्र हों या फिर सन्यासी हमें ९० के दशक का आरक्षण विरोधी आन्दोलन याद है. कुछ लोगों के भड़काऊ बयानों ने देश को एक आग में झोंक दिया था, कई छात्र-छात्राओं ने आत्मदाह किया था, सारे देश में अफरातफरी थी. उसके बाद बाबरी मस्जिद को लेकर हुए हंगामें. क्या हुआ सारे देश में सबको याद होगा? ३१ अक्टूबर १९८४ को जब इंदिरा गाँधी को गोली लगी तो पूरा देश कैसे जला था, कुछ ही लोग थे जिन्होंने ये आग फैलाई थी. कैसे भूल जाएँ गोधरा? क्या ये सब आन्दोलनों का कोई परिणाम सामने आया? आज आरक्षण जितना था उससे बढ़ ही गया, बाबरी मस्जिद पर जो फैसला आया उसे कोई मानेगा नहीं.
एक तबका है इस देश में जिनको कहना चाहिए "फुर्सत के बुद्धिजीवी" जिनके पास बस एक काम है, नयी थ्योरी को तैयार कर उसे जनता पर थोपना है, जनता ना माने तो आन्दोलन शुरू कर दो. लेकिन ७० फीसदी वो जनता जो अपने हाड़-मांस को सूखा हमारे लिए काम कर रही है उसके लिए आन्दोलन करने वाला कोई नहीं. १००० रूपया ना दे पाने के कारण कई किसानों की जमीने और घर कुर्क कर लिए जातें हैं; तब कहाँ होते हैं ये सब लोग. इन्हें दूर तो बहुत दिखता है लेकिन बगल वाले का गला ये बखूबी काटते हैं. जब किसी की बहन या माँ के साथ दुर्व्यवहार होता है तो कहाँ रहते हैं वो वकील जो देश को सुधारने की बात करते हैं. आन्दोलन और हड़ताल को मानवाधिकार और संविधान प्रदत्त अधिकार मानने वाले ये तथाकथित बुद्धिजीवी, अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन क्यूं नहीं करते हैं? अगर संविधान में आस्था हो तो पूरी हो. पहले अपना पाठ तो पूरा पढ़ें फिर बढ़ें देश सुधार की ओर. एक ख़ास वर्ग को आज देश के इन ठेकेदारों ने बोलने को तैयार कर छोड़ा है और ये हैं कि काठ के पुतलों की तरह अपने आकाओं का संरक्षण करने खड़े दिखते हैं चाक-चौबंद.
आप आन्दोलन कीजिये लेकिन ये जरूर ध्यान में रखें की देश पहले है, हम बाद में... मेरे कहने से तो ये देश सुधरने से रहा. इस देश में जो फैसले जनता ने किये वो ही सबसे खूबसूरत हैं, और आगे भी उसे करने दो. आजादी के बाद इस देश की सत्ता कई बार बदली लेकिन एक पार्टी बार-बार लौट के आई है, इमरजेंसी के बाद ये माना जा रहा था कि कि अब इंदिरा कभी नहीं लौटेंगी लेकिन लौटी और मरने तक सत्ता में रही. उसके बाद वी.पी सिंह के बोफोर्स के हल्ले के बाद फिर कांग्रेस का सूरज अस्त हुआ, लेकिन फिर नर्शिम्हा राव और भारत की आजादी के बाद का स्वर्ण युग रहा विकास के मायने में. फिर पतन कुछ साल फिर सत्ता मनमोहन को दो बार. हर बार हल्ला हुआ लेकिन हर बार विकल्प ना होने पर फिर लौट के आना. आज फिर कांग्रेस हाशियें पर है, लेकिन फिर एक बार लौटेगी. तो आखिर क्या हुआ इतने आन्दोलनों का इनके अनुसार तो कांग्रेस को कभी लौटना ही नहीं चाहिए था. दरअसल आन्दोलन सिर्फ सत्ता को हथियाने या बचाने को होते हैं. ऐसे आन्दोलन का कुछ होने वाला नहीं जब तक एक गरीब किसान, और मजदूर हुंकार कर खड़ा नहीं होगा, आप एसी पंडाल और सुरक्षा के बीच चाहे जितने आन्दोलन कर लें शक्ल नहीं बदलेगी. जनता के स्वत: स्फूर्त होने का इन्तजार करो, आन्दोलन शब्दों से नहीं आता, कर्मों से आता है. गांधी बनने के लिए महीनों उपवास की ताकत और अनाशक्ति योग का अभ्यास चाहिए, आजाद जैसा सीना होना चाहिए.
(आशुतोष पाण्डेय)

दुखद: एक युग का अंत

उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी से एक दुखद समाचार प्राप्त हुआ है.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अंबा दत्त ढौंडियाल का गुरुवार को हल्द्वानी में देहावसान हो गया. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अंबा दत्त ढौंडियाल का जन्म छह दिसंबर 1924 को आंवलाकोट गांव स्थित कोटाबाग में हुआ था. महात्मा गांधी की प्रेरणा से ही 14 वर्ष की अवस्था में ही भारत छोड़ो आंदोलन व सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा. स्वर्गीय ढौंडियाल पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ बरेली जेल में आठ माह तक रहे. पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के साथ भी 11 माह तक अल्मोड़ा जेल में रहे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था. उत्तर प्रदेश राज्यपाल ने भी उन्हें सम्मानित किया था. उन्हें जिला पंचायत सदस्य मनोनीत किया गया था. वे ग्राम सभा आंवलाकोट के 15 वर्ष तक ग्राम प्रधान रहे. राजकीय सम्मान के साथ रानीबाग के चित्रशिला घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया.
देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले इस जाबांज सिपाही की कमी तो पूरी नहीं हो सकती है, लेकिन एक सीख हमें जरूर मिलती है कि जिस देश को आजाद करने में इन लोगों ने अपना तन, मन और धन सब लुटा दिया उसे बनाए रखें.
(इनसाईट स्टोरी) 
हल्द्वानी