सोमवार, 15 अगस्त 2011

लोकपाल या तानाशाही?

१५ अगस्त १९४७, और अब १६ अगस्त २०११, जिसे एक नयी आजादी का दिन मुकर्रर कहा जा रहा है. अब सवाल ये है की अन्ना का ये आन्दोलन होना चाहिए या नहीं? अन्ना को हक़ है की वे आन्दोलन करें, अनशन करें या फिर जो चाहें करें. लेकिन इस बार जिस आन्दोलन की बात अन्ना ने की है, उसे लेकर कई लाजमी से सवाल उठने चाहिए. क्या भारतीय संसद अब विश्वास के लायक नहीं रह गयी है, अन्ना की चेष्टा तो ये ही दिखाती है और १.२ अरब की जनसंख्या के निर्वाचन के अधिकार के साथ संविधान को भी चुनौती दे रही है. लोकपाल का एक मसौदा संसद में है, उसमें संशोधन किये जा सकते हैं. संसद में सरकार ही नहीं विपक्ष भी है, अन्ना का विश्वास सरकार में ना हो कम से कम विपक्ष में तो हो. लेकिन अन्ना केवल सिविल सोसाइटी के चंद महानुभावों की राजशाही की मांग कर रहें हैं और उनके समर्थक लोकपाल को जादू बता रहें हैं जिसके आते ही सारा भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा. अनशन के लिए पाइम लोकेशन की मांग वैसी ही है जैसे लड़की के घर आये दुल्हे की फेरों से पहले मनचाहे दहेज़ की मांग. आन्दोलन में अगर सच्चाई होगी तो खुद लोग जुड़ जायेंगें. अन्ना को फ़िक्र है कि पार्किंग कहाँ होगी, समर्थक कहीं परेशान ना हों, अन्ना जी कोई कार्पोरेट ड्रामा कर रहें हैं या फिर आन्दोलन समझ नहीं आ रहा है. अब एक बात मीडिया की वो भी चाहता है कुछ हंगामा हो, टी आर पी और विज्ञापन उसे भी चाहिए. जितना बड़ा ड्रामा उतना ज्यादा प्राइम टाइम कमाई अन्ना आजकल रियलिटी शो में भी पहुच रहें हैं जैसे फ़िल्मी कलाकार फिल्मों के प्रचार के लिए आते हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल देश की तीन चौथाई जनता जो गाँव और बीहड़ों में हैं कोई पहुचा है वहाँ तक हमें मौक़ा मिला उत्तराखंड के सूदूर गाँव में जाने का जहां का संपर्क भारी बारिश के चलते लम्बे समय से देश के अन्य भागों से कटा है? करीब १००० लोगों से बात की अन्ना की मुहिम की लेकिन किसी को कुछ मालूम नहीं है ये अन्ना कौन है या क्या कर रहा है? जो अन्ना टीम दिल्ली के चांदनी चौक में शत प्रतिशत समर्थन का दावा कर रही है, उसे कोई जानता तक नहीं इन गाँव में. इसके बाद रूख किया उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों से आये लोगों की ओर और उनसे से बात की जो कमाई के लिए उत्तराखंड के शहरों में आयें हैं, जब अन्ना के बारे में पूछा तो बोले बाबू जी अब गन्ना कहाँ बोयें जमीन बची कहाँ है , जब हमने बताया कि अन्ना बड़े समाजसेवी हैं, तो उनका जवाब था बाबू जी बख्श दो इन्हीं आन्दोलन करने वालों ने तो देश का बड़ा गर्क कर दिया है, इनके आन्दोलन होंगे, बंद होगा और गरीब मरेगा. हाँ फेसबुक और ट्विट करने वाला एक वर्ग जरूर कागजी समर्थन दे रहा है, लोगों को भडका और बहका के बड़े-बड़े कमेन्ट दे और ले रहा है. ये सब नाम के लिए या मस्ती के लिए है. इसमें से कितने हैं जो आमरण अनशन कर रहें हैं? हां कुछ ज्जबाती जरूर होते हैं, जो जान दे देते और लेते हैं यही गोधरा में हुआ, ९० के दशक में आरक्षण आन्दोलन में भी यही हुआ. तब भी किसी ने लाभ उठाया, आज भी कोई उठाएगा. जनता का क्या? अन्ना का एन जी ओ और चल जाएगा. वैसे अगर अन्ना २००५ में आयी जस्टिस पी बी सावंत की रिपोर्ट में लगे आरोपों को स्वीकार ही लेते तो अच्छा लगता, लेकिन भाई क्या करें अन्ना को ना ही संसद की गरिमा की चिंता है ना ही न्यायपालिका के न्याय का भरोसा, उन्हें बस लोकपाल चाहिए, सवाल ये है कि लोकपाल या तानाशाही?

(आशुतोष पाण्डेय)