शनिवार, 4 अगस्त 2012

अन्ना की कशीदाकारी: जनता के साथ धोखा


तू भी अन्ना, मैं भी अन्ना.... जैसे नारों के फेर में पड़ कर लाखों भारतवासियों की भावनाओं के साथ लंबा खिलवाड़ किया गया. राजनीति को गाली और नेताओं को चोर बताने वाली टीम अन्ना जिस छद्म आंदोलन का सहारा लेकर संसद और लोकतंत्र को गुमराह कर रहे थी उसका हस्र तो होना ही था लेकिन देश और उसकी भावनाओं से जो खिलवाड़ किया गया वह आश्चर्यजनक है. लोकतंत्र का जो दुरूपयोग अन्ना और उनकी सिविल सोसायटी ने किया वैसा इससे पूर्व कहीं नहीं देखा गया. भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी अन्ना की टीम खुद जनता के साथ एक बड़ा खेल खेल गयी. जनता की मेहनत की कमाई से चलाया गया ये आंदोलन टीम अन्ना की लिप्सा की भेंट चढ गया. अन्ना जिस भावना को लेकर इस आंदोलन का आजाग कर चुके थे उसका विषय था जन लोकपाल लेकिन जन लोकपाल से ये आंदोलन कुछ मंत्रियों के खिलाफ व्यक्तिगत बयान बाजी तक सिमट गया और अंत होने तक शुचिता की तमाम सीमायें लांघकर ये आंदोलन सरकार, मीडिया और व्यक्तिगत आक्षेप का अखाड़ा बन गया. जब ये आंदोलन चला था तो लोगों को आस जगी थी की भ्रष्टाचार के खिलाफ ये लड़ाई किसी मुकाम तक पहुचेगी लेकिन आंदोलन के साथ ही टीम अन्ना कई प्रकार की व्यक्तिगत अपेक्षाओं की शिकार होती गयी. कभी आर एस एस और भाजपा का गुणगान करने और कभी अपने ही सदस्यों पर जासूसी का आरोप लगाकर इस समूह ने खुद  का राजनितिक दलदल में फंसा होना साबित कर दिया था. जंतर मंतर और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सेलिब्रिटी के साथ नाम जोड़ने की तमन्ना रखने वालों से ये आंदोलन आगे नहीं जा पाया. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं के द्वारा तमाम मुद्दों पर सरकारी कार्यालयों पर छापेमारी के अभियान तक चलाए गए, लेकिन ना तो इसके बाद कहीं कुछ कार्रवाई की गई और ना ही कोई आंदोंलन इन अनियमिताओं के खिलाफ किया गया, तो ये सब क्यों किया गया इसका सीधा जवाब किसी के पास नहीं है. इसके बाद इन लोगों ने अपने व्यक्तिगत कार्य सिद्ध करवाए. गैस सिलेंडरों की कालाबाजारी के खिलाफ आंदोलन करने वाले इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्यों के द्वारा ठेकेदार से उनके घर प्राथमिकता के तौर पर सिलेंडर की डिलीवरी करने पर ये आंदोलन यहीं सिमट गया. कई ठेके और अन्य काम भी इन लोगों ने ब्लैकमेल कर करवा लिए. क्या जब ये लोग अन्ना पार्टी के सांसद या विधायक होंगें तो इनका रवैया क्या होगा? ये सोचने वाली बात है. भ्रष्टाचार हटना चाहिए लेकिन पुराने भ्रष्टाचार को हटाने के लिए नए भ्रष्टाचारियों की टीम खड़ी करना कहाँ की सोच है? सत्याग्रह जिसकी तुलना गांधी के सत्याग्रह से की जा रही थी और अन्ना को गांधी कह कर प्रचारित किया जा रहा था इस गांधी के पास ना तो लोकतंत्र का सम्मान करने का माद्दा है और ना ही वो सोच. कहने को गांधीवादी हों लेकिन अन्ना इस आंदोलन में तो प्रोफेशनल ही लगे हर घटना के साथ बेलेंस सीट बना कर आंदोलन को चलाया जा रहा था. भीड़ का गणित तक लगाया गया, पूरे कार्पोरेट तमाशे किये गए, डैमेज कंट्रोल और विज्ञापनों का सहारा लिया गया. गांधी जी ने वैचारिक हिंसा का सहारा कभी नहीं लिया, व्यक्तिगत आक्षेप के लिए उनके दर्शन में कोई जगह नहीं थी, लेकिन अन्ना का आंदोलन तो था ही वैचारिक हिंसा का आंदोलन. गांधी कहलवा लेना आसान है लेकिन गांधी बनना काफी कठिन है. टोपी पहन गांधी बन देश से खिलवाड तो देशद्रोह की श्रेणी में आना चाहिए और इसके लिए एक सजा मुकरर होनी चाहिए.
(आशुतोष पाण्डेय)

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