शनिवार, 22 दिसंबर 2012

शीला की नैतिकता या नौटंकी: दिल्ली गैंगरेप


शीला दीक्षित: कैसे मिलाऊँ बलात्कार पीडिता से नजर? आखिरकार शीला दीक्षित ने मान ही लिया की नैतिकता उन्हें बलात्कार पीडिता से नजर मिलाने के काबिल नहीं मानती है। सच में उन्हें ऐसा ही सोचना चाहिए लेकिन ये सोच दिल से निकल आयी है या फिर अभी गुजरात में कांग्रेस के हश्र पर मानसिक कवायद है या फिर जनता का दबाव। क्योंकि, साथ ही शीला ने ये कहने से भी गुरेज नहीं किया है की दिल्ली की शासन व्यवस्था उनके हाथ नहीं है। शीला ये बात आप मनमोहन जी से क्यों नहीं कहती जब आप दिल्ली की जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी ले ही नहीं सकती हैं तो फिर मुख्यमंत्री क्यों बनी हैं? इतनी मजबूरी में सत्ता कैसी? अगर वास्तव में आपको अफ़सोस है तो इस्तीफा क्यों नहीं दे देती हैं। वैसे नेताओं के टंटे सालों पुराने हैं लेकिन फिर भी जनता इन में फंसती ही है। इस बार भी शीला की मनोवैज्ञानिक पुड़िया शायद चल जाए। चंद दिनों में लोग इस घटना को भूल जायेंगें और शीला जी अपनी नैतिकता को। फिर इन्तजार करना पड़ेगा किसी और हादसे का कि जनता चीत्कार करे और नेता अफ़सोस। हमारे गृह मंत्री शिंदे साहिब ने भी कहा था कि वे भी बेटियों के बाप हैं। लेकिन अब कैसे याद आया उन्हें की वे बेटियों के बाप हैं जिस देश में रोज हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार होता है उनकी अस्मत लूटी जाती है तो... शीला और शिंदे को याद हादसों के बाद ही आती है।  क्या जनता इस नैतिकता की दुहाई पर शीला दीक्षित से ये नहीं पूछेगी की आखिर कब तक हम ऐसे जियेंगें?
(आशुतोष पाण्डेय) 






गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

इनसाईट स्टोरी: अन्ना की बलात्कार को मौन स्वीकृति

इनसाईट स्टोरी: अन्ना की बलात्कार को मौन स्वीकृति: कुछ समय पहले तक देश में अन्ना हर मुद्दे पर मुखर दिखे थे लेकिन अब लगता है एक लम्बे वनवास में किसी जंगल में चले गये हैं, एक ऐसी शख्शियत ...

इनसाईट स्टोरी: बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...

इनसाईट स्टोरी: बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...: गुजरात के चुनाव सम्पन्न तो हो गये और साथ ही साथ मोदी की वापसी के संकेत भी मीडिया ने देने शुरू कर दिए हैं. इस बार मीडिया मोदी को लेकर ज्या...

इनसाईट स्टोरी: बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...

इनसाईट स्टोरी: बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...: गुजरात के चुनाव सम्पन्न तो हो गये और साथ ही साथ मोदी की वापसी के संकेत भी मीडिया ने देने शुरू कर दिए हैं. इस बार मीडिया मोदी को लेकर ज्या...

अन्ना की बलात्कार को मौन स्वीकृति

कुछ समय पहले तक देश में अन्ना हर मुद्दे पर मुखर दिखे थे लेकिन अब लगता है एक लम्बे वनवास में किसी जंगल में चले गये हैं, एक ऐसी शख्शियत जिसे हर दशा में सरकार और नौकरशाहों में खोट दिखता था आज जब दिल्ली एक बलात्कार के लिए चीत्कार रहा है अन्ना कहाँ हैं... किसी को पता नहीं। सच और न्याय के इस बड़े पैरोकार को आज क्या हो गया जो वो चुप है या फिर यहाँ कोई बड़ा स्पांसर नहीं मिल रहा है. ये अन्ना टाईप सेलिब्रेटी हर समय किसी बहकाने वाले को खोजते रहते हैं। देश के साथ धोखा करने वालों को ये देश पूजता है, भारतीय मानस हर बार ठगा जाता है। कभी नेताओं द्वारा और कभी अन्ना जैसे षड्यंत्रकारियों द्वारा देश की लोकतांत्रिक  आत्मा के साथ बलात्कार करने वाला ये शख्स आज बलात्कारियों के कृत्यों पर चुप है आखिर क्यों? क्योंकि  इसे कोई फर्क पड़ता है। अगर यहाँ भी कोई प्रायोजक मिल जाए तो अन्ना कल ही धरने पर होंगें। धत अन्ना एक बेटी की अस्मत लूटी गयी और तुम्हारी चुप्पी.....कल तक इस देश ने आपको आदर्श माना था लेकिन आप तो इन नेताओं से भी बदतर निकले इन्हें कम से कम संवेदना को शब्द तो मिले। अगर अब भी ये देश ऐसे छद्म अन्ना की बाँट जोह रहा है तो देश बिक जाएगा और अन्ना प्रायोजक तलाशता रहेगा। ये देश अब उठ अपने बल बूते लड़ने की कुव्वत कर अन्ना को कोई फर्क नहीं पड़ता की तेरी माँ या बहिन की अस्मत लूटी जाय। 

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

बीजेपी कहीं मोदी को भी ना ले डूबे...


narendra-modiगुजरात के चुनाव सम्पन्न तो हो गये और साथ ही साथ मोदी की वापसी के संकेत भी मीडिया ने देने शुरू कर दिए हैं. इस बार मीडिया मोदी को लेकर ज्यादा उत्साहित दिखता है. मोदी की वापसी कई मायनों में एतिहासिक होगी इसका सबसे बड़ा असर खुद बीजेपी पर पड़ना तय है. बीजेपी के पुराने दिग्गज नेताओं की पूरी जमात मोदी के लौट आने के बाद अपना वजूद खो देगी और पार्टी के बड़ा हिस्सा कई भागों में बंट जाएगा. इससे मोदी को उस सफ़र में नुकसान होगा जिसका ख्वाब उन्होंने देखा है. केशुभाई, आडवानी जैसे नेता मोदी के साथ आ जाएँ लगता नहीं है और अन्य सेक्यूलर दलों का समर्थन भी मिलना मोदी को संभव नहीं होगा जिसमें बिहार के नितीश कुमार भी शामिल हैं. ऐसे में फिर मोदी को गुजरात में ही अपनी ताकत को खोना पड़ सकता है. बीजेपी का इतिहास रहा है की इस पार्टी ने लम्बे समय तक किसी व्यक्ति विशेष में अपनी आस्था नहीं दिखाई है. ऐसे में मोदी के संग पार्टी के सिपहसालार कितने दिन टिक पायेंगें कहा नहीं जा सकता है. एक समय में दिल्ली को याद करें तो मदन लाल खुराना, साहिब सिंह और सुषमा स्वराज इन तीनों को लड़ा कर बीजेपी लंबे वनवास में चली गयी थी. इस बार फिर यही मोदी के साथ दोहराया जाय तो कोई नई बात तो नहीं होगी. देखना तो ये है की मोदी कब तक बीजेपी के लिए ख़ास बने रहते हैं.