रविवार, 16 जून 2013

ये मोदी-मोदी चिल्लायेंगे गठबंधन तोड़ के

तमाम उठापठकों के बाद जदयू और भाजपा का गठबंधन टूट ही गया और इस प्रकार एनडीए गठबंधन महत्वहीन ही हो गया. मोदी के नाम को आगे कर देने के बाद से ही देश की राजनीति में कई नये समीकरण दिखने लगें हैं. पहले आडवानी की नाराजगी फिर नीतीश कुमार का 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ने का फैसला. ममता बनर्जी का तीसरे मोर्चे की तैयारी करना. इन सब के बीच भारतीय राजनीति किसी बड़े उलटफेर का इन्तजार कर रही है. पहले बात मोदी को लेकर हो जाये, मोदी को बीजेपी के धड़े द्वारा विशेष हवा दी जा रही है. पिछले कुछ सालों में बीजेपी के सभी चुनावी मुद्दे पिट चुके हैं उसकी हिंदुत्व की छवि तार-तार हुयी है. ऐसे में भाजपा के पास मोदी ही तुरूप का ऐसा पत्ता है जिस पर दाँव खेला जा सकता है और भाजपा इसी दाँव को लगा भी रही है लेकिन एक राजनैतिक समीक्षक की हैसियत से देखें तो गुजरात के बाहर मोदी का जादू नहीं चल रहा है. लगभग सात दशकों के लोकतांत्रिक इतिहास में देश की सत्ता किसी कट्टरपंथी को नहीं सौपीं गयी है. यही कारण भी है की देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था फली-फूली है. मोदी को गुजरात के परिपेक्ष्य में देखें तो एक विकास पुरूष से ज्यादा उनकी छवि कट्टरपंथी के रूप में दिखी है.
अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने से लेकर जनता के बीच में इस सन्देश को पहुचाने में भी मोदी सफल रहें हैं की मोदी गुजरात की जरूरत हैं अगर मोदी नहीं रहेंगे तो गुजरात में हिन्दू बेमौत मारा जाएगा. लेकिन अपने सियासी फायदे के लिए बजरंगी और कोदनानी को फांसी की सिफारिश करने से भी मोदी को गुरेज नहीं दिखता है, भाड़ में जाए हिन्दू वाली तर्ज में हिन्दू नेताओं को फांसी की मांग करने वाले मोदी को कुछ लोग हिन्दू धर्म के लिए मसीहा के रूप में स्थापित करने की कोशिश में हैं. आडवानी को जिस तरह मोदी ने चित्त किया उससे ये सन्देश ही गया की जो मोदी पूजा नहीं करेगा उसे या तो चुप कर दिया जाएगा या फिर ठिकाने लगाने से भी गुरेज नहीं किया जाएगा. भाजपा मोदी को लेकर जितनी उत्साहित दिख रही है, उसका कोई कारण नहीं दिखता है. कुछ लोगों के सोचने से कोई प्रधानमंत्री नहीं बन जाता है और भाजपा के समर्थक तो मोदी को प्रधानमंत्री बना चुके हैं उन्हें इतना सब्र नहीं की चुनावों का इन्तजार करें. वैसे भाजपा और उसके समर्थक कब किस के तारों को आसमान से जमीनों-जद कर दें कहना मुश्किल हैं. ये वह ही लोग हैं जो कभी आधी रोटी खायेंगें मंदिर वहीं बनायेंगें का नारा देते थे लेकिन सत्ता के बाद एक बार उस और झांका तक नहीं हाँ अटल जी ने पाकिस्तानी पार्टी खूब उडाई और पाकिस्तान ने कारगिल से मार की. अब देखना ये है की मोदी कब तक प्रधानमंत्री बने रहते हैं, चुनाव के बाद तो जनता का फैसला ही मानना पडेगा तब तक मोदी हमारे प्रधानमंत्री. 

हुस्न के जाल में दिल्ली! खरीददार महिलाएं

जी हाँ ये हुस्न भी कब कातिल बन जाए कोई नहीं जानता लेकिन आज हुस्न का भी प्रोफेशनल यूज किया जा रहा है. दिल्ली की बालाएं जहां कई दिलों को धकड़ा रहीं हैं वहीं कई जेबों की तराशी भी कर रही हैं। हुस्न और अदाओं का बाजार सजा रहता है जब जो चाहे आये और खरीद ले. एस्कार्ट सर्विस के नाम पर दिल्ली के हर कोने में ये बालाएं तैयार मिलती हैं. बुकिंग नेट से, एस एम एस, फोन या फिर दलालों के जरिये की जा सकती है. एक खासे प्रोफेशनल की तरह इनके भी समय, स्टेट्स और लोकेशन के अनुसार दाम तय हैं। इस बाजार में कौन बिक रहा है और कौन खरीद रहा है ये जान पाना मुश्किल है. फीमेल एस्कार्ट ही नहीं मेल एस्कार्ट भी इस प्रोफेशन में हैं और उनकी बड़ी डिमांड है. एक अनुमान के अनुसार दिल्ली और एनसीआर के इलाके में करीब 800 मेल एस्कार्ट सर्विस हैं। इसका मतलब क्या निकाला जाय क्या महिलाएं भी हुस्न और सेक्स के बाजार में खरीददार हैं, जी बिलकुल मेल एस्कार्ट का धंधा जिस रफ्तार से चल पड़ा है उसके अनुसार तो महिला ग्राहकों की संख्या भी कम नहीं हैं। एक विशेष अभियान के तहत जब एक मेल स्ट्रिपर से बात की तो काफी दिलचस्प बात सामने आयीं हैं, एक मेल स्ट्रिपर को एक बार में 10,000 से 30,000 मिलता है. ये मेल स्ट्रिपर कई बार तो एक ग्रुप के द्वारा भी बुक करवाए जातें हैं. 

शुक्रवार, 14 जून 2013

मानव डीएनए का पेटेंट नहीं हो सकता


अमरीका के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मेडिकल कंपनियां मनुष्य के प्राकृतिक डीएनए का पेटेंट नहीं करा सकतीं लेकिन प्रयोगशाला में तैयार किया गया डीएनए पेटेंट योग्य माना जाएगा. कोर्ट का कहना है कि डीएनए प्रकृति की देन है और सिर्फ़ इस आधार पर उसका पेटेंट नहीं किया जा सकता कि किसी शोध के लिए वह शरीर से अलग किया गया है. कोर्ट ने मिरियड जेनेटिक्स नाम की एक अमरीकी कंपनी द्वारा स्तन और गर्भाशय कैंसर का पता लगाने संबंधी शोध में इस्तेमाल हुए जीन के पेटेंट को अवैध क़रार दिया है.
चिकित्सकीय शोध और जीव विज्ञान तकनीक के लिए कोर्ट के इस फ़ैसले के दूरगामी परिणाम होंगे. अमरीकी जैव वैज्ञानिक समुदाय ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि ऐसे पेटेंट पर बंदिशें लगाने से जीन से जुड़े शोध पर नकारात्मक असर पड़ेगा. मामला मुख्य रूप से स्तन और गर्भाशय कैंसर का पता लगाने संबंधी शोध से जुड़ा था.मिरियड जेनेटिक्स एक ऐसे टेस्ट पर काम कर रही थी जिससे कैंसर को जन्म देने के लिए जिम्मेदार जीन में तब्दीली की संभावना को तलाशा जा सके. अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन का तर्क था कि डीएनए प्रकृति की रचना है इसलिए इसका पेटेंट नहीं हो सकता लेकिन कंपनी का कहना था कि जिस जीन पर सवाल उठाए जा रहे हैं उसे कंपनी ने शरीर से बाहर निकाल कर शोध किया है इसलिए उसका पेटेंट हो सकता है. 
2010 में एक न्यूयॉर्क फ़ेडरल कोर्ट ने यूनियन का पक्ष लिया लेकिन अपीलीय न्यायालय ने मिरियड जेनेटिक्स की बात स्वीकार करते हुए कहा कि मानव शरीर से निकाले गए डीएनए का रासायनिक स्वरूप बिल्कुल भिन्न होता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना. न्यायाधीश जस्टिस टॉमस ने फ़ैसले में लिखा कि सिर्फ़ इस आधार पर कि 'जीन को शरीर से बाहर निकाल लिया गया है उससे मिलने वाली जानकारी को पेटेंट योग्य नहीं माना जा सकता'. इस कथन के समर्थन में ही न्यायाधीश जस्टिस एन्टोनिन स्केलिया ने लिखा कि डीएनए का एक हिस्सा अगर बाहर निकाल भी लिया जाए तब भी वह अपने स्वरूप में उस प्राकृतिक डीएनए का ही हिस्सा है. अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन की वक़ील सैन्ड्रा पार्क इस फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहती हैं कि अब वैज्ञानिकों के लिए इन जीन पर शोध करना ज़्यादा आसान होगा क्योंकि किसी तरह की बौद्धिक संपत्ति के उल्लंघन का कोई डर नहीं रहेगा .अमरीका के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मेडिकल कंपनियां मनुष्य के प्राकृतिक डीएनए का पेटेंट नहीं करा सकतीं लेकिन प्रयोगशाला में तैयार किया गया डीएनए पेटेंट योग्य माना जाएगा. कोर्ट का कहना है कि डीएनए प्रकृति की देन है और सिर्फ़ इस आधार पर उसका पेटेंट नहीं किया जा सकता कि किसी शोध के लिए वह शरीर से अलग किया गया है. कोर्ट ने मिरियड जेनेटिक्स नाम की एक अमरीकी कंपनी द्वारा स्तन और गर्भाशय कैंसर का पता लगाने संबंधी शोध में इस्तेमाल हुए जीन के पेटेंट को अवैध क़रार दिया है. चिकित्सकीय शोध और जीव विज्ञान तकनीक के लिए कोर्ट के इस फ़ैसले के दूरगामी परिणाम होंगे. अमरीकी जैव वैज्ञानिक समुदाय ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि ऐसे पेटेंट पर बंदिशें लगाने से जीन से जुड़े शोध पर नकारात्मक असर पड़ेगा. कोर्ट का ये फ़ैसला मिरियड जेनेटिक्स और अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन के बीच चले एक मुक़दमे का नतीजा है. इस संगठन ने 2009 में एक मुक़दमा दायर कर ये सवाल उठाया था कि क्या मेडिकल कंपनियों को मानव जीन का पेटेंट करने की इजाज़त होनी चाहिए.