शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

पहले ओबामा फिर देश: वाह क्या कहने?

पाकिस्तान में पेशावर में आतंकी हमलों के बाद भारत में भी हाई अलर्ट जारी किया गया है. लेकिन ये हाईअलर्ट सिर्फ कुछ वी. आई. पी इलाकों या फिर बड़े होटलों तक दिख रहा है. सरकार की फ़िक्र ओबामा हैं जो गणतन्त्र दिवस पर मुख्य-अतिथि होंगें किसी को आम आदमी की सुरक्षा से क्या लेना? आम आदमी की सुरक्षा में तो रोज सेंध लगती है, कभी उसके साथ लूट होती है, कभी रेप और कभी हत्या! कितने लूट, हत्या या रेप को रोक पाई है सरकार इसका जवाब किसी के पास नहीं है. अब अपनी दिल्ली को ही लें आये दिन लूट, रेप और हत्याएं होती हैं और तमाम दोषी खुले आम घूम रहें हैं और आम आदमी सिर्फ शिकार ही बन रहा है. ऐसे में सरकार और उसका ये तन्त्र किस सुरक्षा की बात कहता है? जिन्होंने आपको चुना है उनको तो सुरक्षा दे दो, ओबामा की बाद में सोचना. लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जी हैं उनकी उपलब्धि देश की जनता नहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा हैं, अमेरिका को कर दिखाना है, अमेरिकी पैसे वालों को खुश रखना है.
अब देश की जनता के पास खुद की सुरक्षा का कोई विकल्प है? सारी पुलिस तो गणतन्त्र दिवस की तैयारी में होगी और हम पाकेटमारों और रेपिस्ट की जद में, वैसे जब पुलिस वहां होती भी
पहले ओबामा: फिर देश की जनता 
है तो करती क्या है? बस इतना होता है, अपराध हो जाने के बाद मौक़ा-मुयाना जरूर करती है, कुछ लोगों को हड़काती है, कुछ से कमाती है और कुछ को भगाती है. लेकिन अब कुछ दिन मौक़ा-मुयाना कम होगा वैसे ही थाने में पुलिस स्टाफ का रोना हर एस.एच.ओ का एक बड़ा बहाना है और अब तो ओबामा आने वाले हैं और ओसामा के शागिर्द धमका रहें हैं तो पहले ओबामा फिर देश... क्या यही होगा? हमारे राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री मोदी जी? तो बदला क्या? कम से पहले जो लोग थे उन्होंने राष्ट्रवाद को तो बदनाम नहीं किया था.. और आप तो...?

रविवार, 14 दिसंबर 2014

बेचे जा रहें हैं दिल्ली के स्मारक

दिल्ली में पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित कई स्मारकों पर अवैध कब्जे की खबर मिल रही है.  इन स्मारकों की जमीन 10 हजार रूपया से 50 रूपया प्रति गज तक माफियाओं द्वारा खुले आम बेची जा रही है. दिल्ली पुलिस समेत पुरातत्व विभाग और राजस्व विभाग भी इन माफियाओं को संरक्षण देता दिख रहा है. दिल्ली में तुगलकाबाद के किले में ये अतिक्रमण खुले आम दिखता है. इस अवैध जमीन पर बकायदा बिजली और पानी के कनेक्शन भी दिए गयें हैं और इन लोगों को दिल्ली की वोटर लिस्ट में शामिल भी किया गया है. इस संदर्भ में कुछ मामलों में अवैध निर्माण को हटाने के लिए कई बार भारतीय पुरातत्व विभाग कब्जेदारों को नोटिस भी दे चुका है और कुछ मामले न्यायालय में भी लंबित हैं. लेकिन माफियाओं के जोर के चलते विभाग इन अतिक्रमणों को हटाने में अपनी अक्षमता ही दिखाता है. बड़ा सवाल ये है की माफियाओं, पुरातत्व विभाग और पुलिस की मिलीभगत से आम आदमी जो यहां जमीन खरीद रहा है बुरी तरह से ठगा जा रहा है. इस काम में स्थानीय प्रशासन के साथ नेताओं का भी पूर्ण संरक्षण इन माफियाओं को मिला है.  इनसाईट स्टोरी की टीम इन सभी स्मारकों की कहानी आप तक पहुंचाएगी अगर आपके पास भी किसी ऐसे स्मारक में अवैध कब्जे की जानकारी हो तो हमें भेजें.


गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

चोर भाई भाग लो नहीं तो पकड़ना पडेगा: दिल्ली पुलिस

दिल्ली, सड़कें, मेट्रो स्टेशन; दिन या फिर रात कहीं कोई सुरक्षित नहीं दिखता है. कब और कहाँ कोई रेप हो जाए कहाँ आपको लूट लिया जाय इसका कोई अंदाजा किसी को नहीं। दिल्ली किसी भी एंगेल से सुरक्षित नहीं दिखती है. पुलिस तब तक सोती है जब तक कोई बड़ी वारदात ना हो जाय और अपराधी को तब तक मौक़ा देती है जब तक वह खुद को सुरक्षित ना कर लें. इसके लिए उनके पास तमाम बहाने हैं, लेकिन हर बार बहाने काम नहीं आते हैं कई बार भारी जनदबाव के चलते कुछ अपराधियों को पकड़ना भी पड़ता है. इसके बाद पुलिस अफसर खूब गुणगान करते हैं खुद की सफलताओं का, कुछ बिना बारी प्रमोशन भी पा जाते हैं लेकिन ज्यादातर केसों में उनकी ये चपलता नहीं दिखती है.
फोटो साभार: गूगल सर्च 

घटना की सूचना मिलने के बाद मौक़ा-ये-वारदात पर पहुँचनें तक इनके कई एक्सक्यूज़ बनते हैं और उसके बाद अपराधी को खोजने के बजाय कई प्रकार की कागजी कार्रवाई में पीड़ित को उलझाया जाता है फिर ज्यादातर मामलों को वहीं समाप्त करने के लिए तमाम बहानों का सहारा लिया जाता है. मोबाइल या पर्स लुटे जाने पर तो ये कहा जाता है लूट की रिपोर्ट न लिखवाएं और मात्र मोबाइल खो जाने की रिपोर्ट लिखवा लें जिससे नया नंबर एक्टिवेट किया जा सके. ज्यादा जोर पड़ने पर मोबाइल को सर्वलांस में लगाने की बात की जाती है और फिर इस बात के लिए कई अधिकारियों के परमिशन का बहाना होता है. ये सब सिर्फ अपराधी को खुद को सुरक्षित करने का खुला मौक़ा देने का एक तरीका नहीं तो क्या है? चोर भाई भाग लो नहीं तो पकड़ना पडेगा शायद इसी स्ट्रेटेजी पर काम करती है हमारी सबसे काबिल पुलिस।

यहां देखें क्या आपका मोबाइल सर्वलांस पर लगा है या नहीं?
 

दिल्ली पुलिस बनाती फूलिश

कैसा न्याय? कैसी सेवा? 
दिल्ली पुलिस जो खुद को सबसे उत्कृष्ट होने का दावा करती है और सीधे केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन है. वास्तव में एक पुतला पुलिस है जिसके पास ना कुछ करने के अधिकार हैं, ना ही कुछ करने की तम्मना रिक्शे या पटरी वालों को उत्पीड़ित करना हो या कहीं वैध या अवैध निर्माण को रूकवाना हो तो वहां दिल्ली पुलिस की आमद काफी तेज होती है लेकिन वहीं किसी  अपराधी को पकड़ना हो तो उनके पास समय, संसाधन और स्टाफ सभी का रोना शुरू होता है. वैसे भी देखा जाय तो जब खुली सड़कों में रेप हों और खुलेआम स्नैचिंग की घटनाएँ हो तो दिल्ली पुलिस की कर्मठता पर सवाल उठते ही हैं. किसी भी क्षेत्र में आप खुद को सेफ नहीं पाते हैं. घंटों तक पुलिस तमाम बहाने बनाकर मोबाइल फोन को सर्वलांस पर नहीं लगवाते हैं वे अपराधियों को पूरा समय देते हैं की वे खुद को सुरक्षित कर लें मेरे द्वारा खुद 10 दिसम्बर 2014 को की गयी एफ आई आर 1380
श्री बी. एस बस्सी कोई रिस्पॉन्स नहीं 
(पुलिस स्टेशन बेगमपुर) पर 24 घंटे बीत जाने के बाद भी फोन को सर्वलांस पर नहीं लिया गया है. जबकि इसकी सूचना ए.सी.पी  श्री मीणा को उनके मोबाइल पर भी वारदात के एक घंटे के अंदर दी गई थी. साथ ही पुलिस कमिश्नर श्री बी एस बस्सी जी के निवास पर 011 24602210 पर श्री योगेन्द्र सिंह को भी 9:00 बजे दी गई और करीब आधे घंटे बाद उन्होंने बताया की उन्होंने आई.ओ  को निर्देश दिए हैं. इस सन्दर्भ में ए.सी.पी  श्री मीणा के हस्तक्षेप के बाद लोकल एस.एच.ओ  श्री रमेश सिंह भी मौका-ये-वारदात पर आये और मुझे इस पर कार्रवाई का भरोसा दिया और तुरंत लोकल गस्त बढ़ाने की बात भी की. लेकिन 24 घंटे बाद भी फोन को सर्वलांस पर नहीं लिया गया. ऐसा क्यों है इस संदर्भ में जब मैंने 11 दिसंबर 2014, 8  बजे श्री मीणा से पूछा तो उनका कहना था की फॉर्म तो कल ही भर दिया गया था लेकिन अभी तक फोन ट्रैकिंग पर क्यों नहीं लगा तो इसका जवाब उनके पास नहीं था. पुलिस ए.एस.आई श्री सतवीर सिंह ने बताया की उनके पास स्टाफ और साधनों की कमी है. लेकिन ये सच है की कहीं कोई पानी का नया कनेक्शन लिया जाता है तो वहां तमाम स्टाफ तुरंत पहुंच जाता है. तब पता नहीं स्टाफ कहाँ से आता है? मैंने खुद श्री बी एस बस्सी जी को उनके मोबाइल पर 100 से ज्यादा बार फोन करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने फोन उठाना गँवारा नहीं समझा क्या किसी आपात स्थिति में उनसे कोई संपर्क कर पायेगा। क्या यहीं राजनाथ साहब की गुड गवर्नेन्स है? दिल्ली पुलिस का शान्ति, सेवा और न्याय का स्लोगन सही अर्थों में अपराधियों को शान्ति से काम करने दें, माफियाओं को सेवा दें और आम आदमी को न्याय से महरूम रखें यही लगता है.
 

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

मिड डे मील: रसोइये को निवाला नहीं

मिड डे मील सरकार की शिक्षा योजना का बड़ा हिस्सा है, जिसके द्वारा  जहां बच्चे को पोषण का लक्ष्य किया जाता है वहीं दूसरी ओर उन्हें स्कूल में बनाये रखने का भी ये एक बड़ा तरीका साबित हुआ है. लेकिन कभी गुणवत्ता तो कभी किन्हीं और कारणों से ये योजना अपवादों में बनी रही है. अभी हाल ही में दिल्ली जंतर-मंतर में धरने पर बैठी कई रसोइया जो बिहार के स्कूलों में भोजन बनाने का करती हैं से रूबरू होने और बात करने का मौक़ा मिला। क्या और क्यों? ये सच है की मिड डे मील एक महत्वाकांक्षी योजना है. लेकिन इन रसोइयों की हालत देख तो लग रहा था की ये सब ढकोसला मात्र है. मात्र एक हजार रूपया महीना पर काम करने वाली ये महिलाएं न्यूनतम निर्धारित मजदूरी भी नहीं प्राप्त कर पा रहीं है. इन महिलाओं से बात कर पता चला की कितनी बदतर हालातों के बीच ये इस योजना को सफलता पूर्वक पूरा करने के लिए अपना पूरा प्रयास कर रहीं हैं. ख़ास बात यह है की इन महिलाओं को मात्र १० माह का पैसा ही मिलता है. मानव संसाधन मंत्रालय की वेबसाइट को काफी रंगीन तो कर दिया गया है लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है. आखिर कब तक बच्चों को खाना परोसने वालों को एक निवाले के लिए तरसना पडेगा। वैसे तो बिहार में स्वयंसेवी संस्थाओं का एक बड़ा समूह है जो शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने और बदलने का दावा कर रहा है लेकिन इस पर उनकी खामोशी उनकी मंशा पर भी सवाल खड़ा करती है.

(इनसाईट स्टोरी)


रविवार, 17 अगस्त 2014

मांझी डुबो ना दें मोदी की नैया


एक ओर दिल्ली में लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के लिए माता-पिता को दोष दे रहें हैं कि माँ-बाप अपने लडकों पर बंधन नहीं लगाते हैं, लोग तालियाँ बजाते हैं. मोदी खुश हैं कि लोग तालियाँ बजा रहें हैं लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री का भी एक लड़का प्रवीण मांझी है जिस पर एक महिला कांस्टेबल के शोषण का आरोप लगा तो उनका कहना है की उनका लड़का क्या अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ घूम भी नहीं सकता है जबकि पार्कों में आमतौर पर ऐसे जोड़े दिखते हैं. गौरतलब है की बोध गया के एक होटल में  कर्मचारियों द्वारा होटल का बिल जमा ना करवाने पर मांझी के बेटे और उनके आई साथ महिला कांस्टेबल को भी कमरे में बंद कर दिया था. जिसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ी थी लेकिन बाद में होटल वाले को कुछ पैसा दे मामले को रफा-दफा करने का प्रयास किया गया. इसके बाद राज्य भाजपा के द्वारा भी मोर्चा खोला गया तो जीतन मांझी का महादलित का रोना शुरू हो गया की एक महादलित को मुख्यमंत्री बना देख कुछ नेताओं को बुरा लग रहा है, इसी कारण वे उनके खिलाफ प्रचार कर रहें हैं.
अब सवाल मोदी जी से क्या जीतन मांझी आपके उन तथाकथित बापों में शामिल नहीं जिनका जिक्र लाल किले से किया गया था. क्योंकि आप ना इस विषय पर कुछ बोले हैं और ना ही कोई एक्शन आप की ओर से दिख रहा है. क्या लालकिले से किया प्रलाप एक दिखावा मात्र था वैसे इस प्रकार के भ्रम में आप देश की जनता को डालते आयें हैं. लेकिन लगता है ऐसे मांझी आप की नैया डुबो ही देंगें. इसलिए ज़रा सोचिये लालकिले की प्राचीर से बोलने की एक मर्यादा होती है या होनी चाहिए... खैर अब आप से क्या कहना... आप तो वहीं बोलेंगें जो बोलने को कहा जाएगा... बिना देखे 1 घंटे के जिस प्रलाप पर आपकी तारीफ़ हो रही है उसकी धज्जियां तो 24 घंटे में ही मांझी जैसों ने उड़ा दी. 

सोमवार, 28 जुलाई 2014

सजा सेक्स का बाजार: क्यों ना हों बलात्कार

आज बलात्कार का विषय प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या फिर सोशल मीडिया सबमें सबसे ज्यादा पढ़ा और देखे जाने वाला विषय है. जब भी कहीं बलात्कार की घटना घटती है तो चारों ओर हो-हल्ला मचता है. विशेषकर सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो बलात्कार को सबसे ज्यादा टीआरपी का विषय मानता है. बलात्कार क्यों होते है? इस बारे में भी तमाम बातें बनती हैं. कोई इसे ड्रेस तो कोई इसे मोबाइल या फिर चाउमीन से जोड़ कर तक बयान देता है. बलात्कार को लेकर बने कानूनों पर भी काफी चर्चा होती है. निर्भया काण्ड के बाद बने नये कानूनों के बाद ये माना जा रहा था कि बलात्कार की घटनाओं में काफी कमी होगी. लेकिन हुआ इसका उल्टा इस प्रकार के अपराधों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. इसका क्या मतलब निकाला जाय? अभी उत्तर प्रदेश में लगातार हो रहे बलात्कारों के लिए अखिलेश सरकार की काफी आलोचना हो रही है. मुलायम सिंह के बयान बच्चों से गलती हो जाती है या फिर इतने बड़े राज्य में बलात्कार को रोक पाना आसान नहीं है पर भी तमाम आलोचनाएँ होती हैं. इससे पहले दिल्ली में भी बलात्कार की कई घटनाएँ एक के बाद एक लगातार सामने आयी थी. इस पर शीला सरकार और मनमोहन सरकार की काफी किरकिरी भी हुयी थी. 

आकड़ों के उलझाव से दूर हम एक विशेष विशलेष्ण प्रस्तुत कर रहें हैं.

जब हमने बलात्कार के कारणों को ढूढना शुरू किया तो कई नये पहलू सामने आये, जिसमें सामाजिक, आर्थिक, नैतिक के साथ सेक्स के लिए तैयार बाजार का बड़ा हाथ दिखा. बलात्कार विषय पर जब भी बहस हुयी ज्यादातर संवेदनाओं के दायरे में ही हुयी है. इस विशेष रपट में हम बलात्कार के लिए जिम्मेदार कुछ कमर्शियल बिन्दुओं पर चर्चा करेंगें. आइये पहले सेक्स के लिए तैयार बाजार पर नजर डालें जो अंततः बलात्कार जैसी वीभस्तता पर जाकर खत्म होता है. सेक्स विषय पर आज समाज बहस जरूर करता है लेकिन सेक्स के इस बाजार के बारे में बात करने में उसकी नैतिकता को चोट पहुचती है. आज सरकारी योजनाओं के साथ मीडिया और बाजार खुले सेक्स की ओर समाज को धकेलने का काम कर रही है. सेक्स के लिए जरूरी या बचने के उपायों का खूब प्रचार किया जाता है. एक बड़ा बाजार जिस पर आम आदमी की नजर भी नहीं पड़ती है एक पानवाडी से लेकर बड़े से बड़े माल तक में सजा दिखता है. क्या ये सब भी बलात्कार के लिए जिम्मेदार हैं? इस विषय पर कोई बहस आज तक नहीं दिखी. देश में गर्भ निरोधकों का एक बड़ा बाजार है. जिसमें अनवांटेड 72, आई-पिल्स, कांडोम खुले आम बिकते हैं. इनके कई पन्नों के विज्ञापन रोज समाचार पत्र और पत्रिकाओं में छपते हैं. टीवी में इनके विज्ञापन काफी आम हैं. जिसमें इनसे मिलने वाली चरम अनुभूतियों के साथ लाभ भी गिनाएं जाते हैं. अब बात करते हैं इनके ग्राहकों की, इसमें तमाम वे लोग हैं जिन्हें इनकी आवश्यकता नहीं है. टीनएजर के साथ अविवाहितों का बड़ा वर्ग भी इसका खुल कर प्रयोग कर रहा है. अविवाहित जोड़ें इनका प्रयोग क्यों कर रहें हैं? इन उत्पादों को उन्हें क्यों बेचा जा रहा है. क्या इनके उपयोगकर्ताओं का कृत्य बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है? आज बाजार में सेक्स पावर को बढाने के साथ गर्भधारण करने से बचने के तमाम तरीके मौजूद हैं और आसानी से उपलब्ध भी हैं और इन्हें काफी लुभावने विज्ञापनों के साथ बेचा जा रहा है. किसी भी मीडिया की बात कर लें सब जगह इनकी चर्चे आम हैं. विशेषकर इन्टरनेट और मोबाइल की दस्तक ने इसे आम आदमी से जोड़ने में बड़ी मदद की है. पोर्न साइट्स खुलेआम उपलब्ध हैं जहां पर सेक्स खुला बिक रहा है. एक फोन पर मेल या फीमेल एस्कॉर्ट हाजिर, हर छोटे-बड़े शहर में एक बड़ी कम्युनिटी इससे जुडी है. मल्टीमीडिया फोन पर अश्लील क्लिप और फुल लेंथ फ़िल्में कोई भी कहीं भी डाऊनलोड करवा सकता है. ये फ़िल्में 10 रूपये की सीडी या डीवीडी से लेकर 500 रूपये की सदस्यता लेकर भी डाउनलोड करवाई जा सकती हैं. और देश में ही पिछले साल करीब 500 करोड़ का बिजनेस सिर्फ महानगरों में किया गया है वह भी पूर्णतया अवैध तरीके से. कई साइट्स तो खुल्मखुला सेक्स स्टोरी परोस रही हैं जो एक आम मन को विचलित करने के लिए काफी हैं. तमाम भारतीय भाषाओं में इन साइट्स पर उत्तेजक कहानियां उपलब्ध हैं. अन्तर्वासना डॉट कॉम जैसी तमाम साइट्स इन उत्तेजक कहानियों को भारतीय नामों के साथ जोड़कर प्रकाशित करती हैं. रेड ट्यूब डॉट कॉम जैसी साइट्स बिलकुल फ्री में सेक्स फिल्मों को डाउनलोड करने की सुविधा दे रहीं हैं. ये सब जनता और सरकारों के सामने है. लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता और फेसबुक और ट्विटर पर बलात्कार या महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले एक्टिविस्ट और संस्थान भी कुछ नहीं बोलते. इस वैश्विक बाजार पर ना ही न्यायपालिका को कुछ गलत नजर आता है और ना ही कार्यपालिका को. आम जनता भी बलात्कार और छेड़खानी घटनाओं पर तो भड़कती है लेकिन इन विषयों के साथ काफी खामोश नजर आती है. तो क्या ये मान लिया जाय की सभी की मौन सहमति इस बाजार के साथ है? जी हाँ कुछ ऐसा ही हम बलात्कारियों की सेक्स भावना भड़काने वाले इन कारणों के साथ अपनी सहमति जताकर कर रहे हैं. अभी एक विश्लेष्ण में सामने आया है की देश में वियाग्रा के 66 सबस्टीट्यूट उपलब्ध हैं जिन की कीमत प्रति गोली Sxx (100 Mg) (Roselabs Healthcare Pvt. Ltd.) 5.73 रूपये से लेकर Viagra (100 Mg) 621.85 रूपये (Pfizer) तक है जो बिना डाक्टरी प्रिस्क्रिप्शन के किसी के लिए भी आसानी से उपलब्ध हैं. कई आनलाइन साइट्स आपको 15% तक छूट के साथ इसकी होम डिलीवरी भी बिना प्रिस्क्रिप्शन के कर देती हैं.

अब आप बताये जब सारा बाजार तैयार है और सभी को सुलभ भी है तो फिर सेक्स भावनाएं भड़कती हैं और उनकी परिणिति बलात्कार के रूप में होती है तो उसे कौन रोक पायेगा. दिल्ली की सबसे बड़ी एसी मार्केट में सेक्स टॉयज बेचने वाले आपको सीधे ऑफर करते हुए मिलते हैं. किसी को उनसे कोई परेशानी नहीं होती है. इस बाजार के साथ उत्तेजना और वह्शीयत के इस इस सच को स्वीकार करना होगा और इससे निपटना भी होगा तभी रेप और रेपिस्ट को रोका जा सकेगा.



(आशुतोष पाण्डेय)

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

अगर यशवंत सिन्हा खुद मुख्यमंत्री बने तो

रांची 1 जुलाय 2014, झारखंड में विधान सभा चुनाव में अगर भाजपा जीती तो मुख्यमंत्री कौन बनेगा इस सवाल के जवाब में भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा अपना आपा खो बैठे. उनका जवाब इतना अशोभनीय था की भाजपा के नेताओं के पास सफाई देने के लिए भी शब्द नहीं बचे हैं. यशवंत सिन्हा रांची स्थित झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स में प्रदेश के बजट पर एक प्रोग्राम को संबोधित कर रहे थे. हाल ही में पूर्व विदेश मंत्री सुर्खियों में थे जब उन्होंने झारखंड में बिजली को लेकर आंदोलन शुरू किया था. इस सिलसिले में वह हजारीबाग में 15 दिनों तक जेल में भी रहे. 
जेल में जब बीजेपी से सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी उनसे मिलने गये थे तो उन्होंने ने कहा था कि यशवंत सिन्हा  झारखंड में नेतृत्व संभालने के लिए बेहद सक्षम नेता हैं. केंद्र की राजनीति से मोदी सरकार से बाहर होने के बाद सिन्हा झारखंड में फिलहाल खुद को सक्रिय रख रहे हैं. सिन्हा के आपत्तिजनक बयान के बाद झारखंड की राजनीति में एक नया बवाल खड़ा हो गया है. राजनीतिक पार्टियों ने तीखी आलोचना की है. बीजेपी के ज्यादातर नेताओं ने इस अशोभनीय कथन पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. झारखंड के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने कहा कि इतने सम्मानित और अनुभवी नेता से ऐसी आपत्तिजनक और असंसदीय भाषा की उम्मीद नहीं थी. इससे पहले भी भाजपा के नेता अपनी पार्टी पर ही खीस निकालते रहें हैं. 
यदि कभी सिन्हा खुद मुख्यमंत्री बनते हैं तो क्या खुद को उस अशोभनीय शब्द से ही संबोधित करेंगें? जहां भाजपा के नेता एक ओर आदर्शों का ढोंग खुले आम करते हैं वहीं इन नेताओं की इन भद्दी टिप्पणियों पर चुप्पी साधे बैठे रहते हैं. 

मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

वाड्रा के मोदी गान के बाद मोदी ने उन्हें देश का दामाद कहा

अब राबर्ट वाड्रा ने नरेंद्र मोदी का गुणगान किया है कल रात एक बिजनेस सेमीनार में उन्होंने कहा की नरेंद्र मोदी ही भारतीय व्यापार को ऊँचाइयों पर पहुचा सकते हैं, उन्होंने गुजरात माडल की तारीफ़ करते हुए कहा की जिस तरह गुजरात का विकास हुआ है उसी तर्ज पर पूरे देश को विकास के रास्ते पर अग्रसर करने की आवश्यकता है. इसके तुरंत बाद मोदी ने भी कहा "राबर्ट इस देश के दामाद हैं" हम उनकी सोच की तारीफ़ करते हैं. दिल्ली में हुए इस सेमीनार के बाद आयोजकों और मीडिया को इस बारे में तूल ना देने का आग्रह किया है. दस जनपथ या कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता ने इस पर किसी टिप्पणी से इनकार कर दिया है, लेकिन भाजपा आज इस बारे में एक प्रेस कांफ्रेस करने का मूड बना रही है.

(महामूर्ख मीडिया प्रतिनिधि)
की प्रस्तुति

शनिवार, 29 मार्च 2014

मसूद गिरफ्तार, राहुल नहीं जायेंगे सहारनपुर

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर संसदीय सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद की शनिवार तड़के हुई गिरफ्तारी के बाद पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सहारनपुर रैली रद्द कर दी गई है. राहुल की शनिवार को सहारनपुर, गाजियाबाद और मुरादाबाद में जनसभाएं होनी थी, लेकिन मसूद की गिरफ्तारी के बाद उनकी सहारनपुर रैली स्थगित कर दी गई है. राहुल की बाकी दोनों रैलियां तय समय पर ही होंगी. अपने इस भाषण में मसूद ने नरेंद्र मोदी की बोटी-बोटी अलग कर देने की बात कही थी. इस मामले में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई थी और इस बयान के लिए मसूद के खिलाफ कार्रवाई की मांग हो रही थी. पुलिस ने बताया कि मसूद को आज सुबह गिरफ्तार किया गया. मसूद सहारनपुर से कांग्रेस के लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी हैं. पार्टी ने उनकी टिप्पणी से यह कहते हुए दूरी बना ली थी कि वह हिंसा को अस्वीकार करती है, चाहे वह शाब्दिक हो या कुछ और. वहीं, भाजपा ने इस टिप्पणी को भड़काउ करार देते हुए विवाद में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को घसीट लिया था. इसके बाद राहुल की सहारनपुर रैली को रद्द कर दिया है. मसूद की उम्मीदवारी को लेकर पार्टी में काफी विवाद चल रहा है. वैसे मसूद ने खुद कांग्रेस पार्टी को इससे अलग करते हुए कहा है की ये भाषण उन्होंने तब दिया था जब वे कांग्रेस में शामिल नहीं थे. इस भाषण के वीडियो फुटेज में मसूद मोदी की बोटी-बोटी करने की बात कह रहें हैं. 

(इनसाईट स्टोरी) 
सहारनपुर 
#insightstory 

मंगलवार, 25 मार्च 2014

तहलका कार्टूनिस्ट तन्मय को माया कामथ अवार्ड-2013

इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ कार्टूनिंग के द्वारा  माया कामथ मेमोरियल अवार्ड-२०१३ की घोषणा कर दी गयी है. राजनैतिक कार्टून की क्षेणी में प्रथम पुरूस्कार के लिए तहलका दिल्ली के सीनियर कार्टूनिस्ट तन्मय त्यागी को चुना गया है. इस अवार्ड के लिए 95 एंट्री में से प्रथम रू० 25000 का पुरूस्कार वर्तमान राजनैतिक घटनाचक्र पर बनाये गये एक चप्पल कार्टून के लिए तन्मय त्यागी को दिया जाएगा.  इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ कार्टूनिंग के द्वारा जारी नोट में बताया गया है कि ये अवार्ड 100 वीं कार्टून प्रदर्शनी में जून 2014 में प्रदान किये जायेंगें. उनके अलावा मनोज चोपड़ा पंजाब केसरी (जम्मू-तवी ) को दूसरा और आलोक निरंतर (सकल टाइम्स) को तीसरा स्थान मिला है. सर्वश्रेष्ठ फॉरेन कार्टूनिस्ट का अवार्ड बुल्गारिया के वलेंतिन को दिया गया है.
 Follow Tanmay On Facebook 

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

प्यार और सेक्स क्या जरूरत नहीं है

कल कुछ लोग प्यार करेंगें! प्यार का इजहार करेंगें! और कुछ इन प्यार करने वालों की खिलाफत. पहली बार एक व्यापक आन्दोलन भी शुरू होगा प्यार करने वालों के लिए.. लव धर्मा नाम से एक संस्था पहली बार प्रेम और सेक्स की सर्वमान्यता पर एक आन्दोलन करने जा रही है. इस देश में प्रेम को खाप की नजरों से ही देखा जाता है लेकिन आज इस बदलते समय में तो हमको बदलना ही होगा. प्यार को परिभाषित या कहें तो स्वीकार्य बनाना ही होगा. हर इंसान के अन्दर प्रेम और सेक्स की प्रवृति होती है और ये ही कारण है की हम एक व्यापक सृष्टि को देखतें हैं. इस सच के बाद भी प्यार और सेक्स को लेकर कहीं ना कहीं एक विरोध दिखता है. आज प्यार एक कुंठा के रूप में जन्म ले रहा है, आप देख सकते हैं की दिल्ली के तमाम पार्कों में अश्लीलता की हद से भी ज्यादा काफी कुछ दिखता है. समाज की मान्यता ना मिलने के कारण ये सब काफी संक्रमित स्थिति में दिख रहा है. समाज, स्कूल, कालेज जहां इस प्यार की शुरूआत होती है वहीं इस प्यार पर पाबंदियां हैं. बजाय पाबंदी के इसे प्रोत्साहित किया जाय, प्यार करना जुर्म ना हो... प्यार के इजहार में आनर किलिंग की धमकी ना हो तो ये प्यार सही दिशा में जाएगा. प्यार के अलावा सेक्स को तो और भी गंदी मानसिकता के साथ देखा जाता है, लेकिन जो सेक्स समस्त सृष्टि का कारक है उसे लेकर इतना हल्ला क्यों? कुछ या कहें
ज्यादातर लोग जो कभी ना कभी सेक्स की क्रियाओं में लिप्त रहतें हैं उन्हें दूसरों की लिप्तता पर बैचेनी क्यों होती है. इस प्रश्न पर एक महानुभाव का सवाल था पार्कों में जो हो रहा है, दिख रहा है क्या वह सब ठीक है? उनका ये सवाल काफी अटपटा था... मैंने कहा की क्या आप इन बच्चों को घर में प्यार करने का मौक़ा देंगें तो वे उबल गये और काफी खरी-खोटी सुना निकल गये. ऐसे ही एक कृष्ण भक्त मिले जो कृष्ण की रास लीला के दीवाने थे एक दिन अपनी बिटिया को किसी लडके के साथ काफी पीते देख लिया तो आपा खो बैठे पहले बिटिया की ठुकाई और फिर लडके के घर जा उसे देख लेने की धमकी देकर आये. जब हमने उनके बारे में जाना तो पता चला की 20 साल पहले उन्होंने खुद लव मैरिज की थी. जो चीज 20 साल पहले ठीक थी आज गलत हो गयी कैसे? 

कभी भी आ सकता है केजरीवाल का इस्तीफा

अभी दे सकते हैं केजरीवाल इस्तीफा! विधान सभा के सत्र में 13 फरवरी को जनलोकपाल को लाने की घोषणा के बाद अंत में केजरीवाल ने अपनी आदत के मुताबिक़ फिर इस बात से पलट कर अपना आदर्श कायम रखा है और फिर विधानसभा में सोमनाथ भारती के इस्तीफे की मांग को लेकर भाजपा और कांग्रेस विधायकों ने काफी बबाल काटा है. सोमनाथ पर चूड़ियाँ और लिपस्टिक फेंक विरोध जताया जा रहा है. विश्वस्त सूत्रों के अनुसार केजरीवाल इस बात का फायदा उठा अपना इस्तीफा विधान सभा में ही पेश कर सकते हैं. ऐसा कर वो एक सन्देश देने में कामयाब हो सकते हैं की आज संसद और फिर विधान सभा में जो घटा उसके बाद वे इस सिस्टम से अलग होना ही पसंद करेंगे. तेलंगाना की मांग को लेकर संसद में चाकू तक निकाले जा चुके हैं. ये चाकू कैसे अन्दर पहुचें ये भी एक बड़ा प्रश्न है. क्या वास्तव में हमारी संसद में सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है ये तमाम सवाल हैं जो अब उठने चाहिए. विधान सभा से बाहर कई थिंक टैंकर इस भूमिका को तैयार करने में लगें हैं.

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

वेलेंटाइन प्रेम सन्देश भेजें अपने अजीज को

 
अपने वेलेंटाइन मेसेज भेजें अपने ख़ास को... इस वेलेंटाइन पर कुछ ख़ास मेसेज भेजें जिन्हें पढने वाला सदा याद रखे. 
अपने मैसेज #love2014  लिखकर हिन्दी या अंगरेजी में भेंजें... इसके साथ आप पिक्चर भी भेज सकते हैं लेकिन केवल JPEG Format में... हम आपके मैसेज आपके अजीज तक पहुचायेंगें... 
मैसेज में अपना नाम इमेल के साथ मोबाइल न. भी शेयर कर सकते हैं. 
साथ ही जिसे मैसेज भेजना हो उसका नाम भी लिखें... 
मैसेज editor.insight@hotmail.com पर भेजें... आपके मैसेज तुरंत लाइव किये जायेंगे


गुरुवार, 23 जनवरी 2014

मैं ज़िंदा हूँ क्योंकि ये मेरे साथ हैं

धर्मेन्द्र: एक जीवंत प्रेरणा 
कभी जब लिखने बैठता हूँ तो लगता है ये सब कुछ खाली है, कहीं कुछ बदलना तो नहीं है लेकिन अगले पल ख्याल आता है कोशिश तो कर ले. फिर कोशिश शुरू होती है कहीं अंतहीन एक कोशिश. कल दो लोगों से मिला एक तो मेरे काफी पुराने मित्र हैं जो कल काफी दिनों के बाद मिले और दूसरे कल एक केन्द्रीय विद्यालय के सेवानिवृत प्रधानाचार्य भी मिले जिनसे हुआ वार्तालाप मैंने फेसबुक पर भी पोस्ट किया जरा बानगी देखिएगा.

(क्या आप को भी ऐसे शिक्षक चाहिए?कल एक केन्द्रीय विद्यालय से रिटायर्ड प्रधानाचार्य मिले, उनकी एक अजीब अनुनय थी पाण्डेय जी मैंने आज तक कोई भ्रष्टाचार नहीं किया बड़े ईमानदारी से नौकरी की अब आपसे एक विनती है कहीं अपने सम्बन्धों का प्रयोग कर मेरे बेटे को जिसने केन्द्रीय विद्यालय पी जी टी (इतिहास) का पेपर दिया है पास करवा दो... जितना भी लेना देना पड़े कोई बात नहीं.
एस जी नाथन: खूबसूरत जिन्दगी 
ये व्यक्ति काफी समर्थ हैं और बेटे के पास आरक्षण की ढाल भी है... फिर भी नौकरियां खरीद रहें हैं क्या नौकरियां यूं बिकती हैं? क्या कोई इन के बेटे की मदद करेगा खैर में कल केन्द्रीय विद्यालय संगठन जाकर कोशिश करता हूँ और फिर बताता हूँ की ये संभव है या नहीं...) Post by Ashutosh Pandey. (पूरा पोस्ट देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें). ये तो हाल है हमारे देश को संभालने वाले गुरूओं का. खैर नौकरियां खरीदने के साथ डिग्रियां खरीदने वालों की भी भरमार है. जो ये सब खरीद ले सारा जहां उसका दीवाना.
दूसरे मित्र का उल्लेख भी उनके नाम के साथ करूंगा. एस जी नाथन एक आम लेकिन ख़ास शख्शियत का आदमी जिसके लिए जिन्दगी में मूल्यों का विशेष मूल्य है. जब भी जो किया उस ईश की कृपा मान कर किया और जीवन के हर पल को खूबसूरत बना दिया. इसके साथ एक बड़ा नाम जिसका उल्लेख में कर रहा हूँ एक योगी का है जिसे कर्मयोगी कहूं या फिर एक इंसान (क्योंकि आज करोड़ों की भीड़ में सब मिलते हैं सिवा इंसान के) धर्मेन्द्र कुमार सिंह इस चेहरे पर जो शांत और निश्चल मुस्कान खिली होती है वो जो कहती है वह वास्तव में सम्मोहित करने वाली है. यूपी के कानपुर में साह्वेस के नाम से एक प्राकृतिक आन्दोलन जिसमें अनन्य भक्ति के साथ कई लोगों को जीवन प्रेरणा देकर उन्हें इंसान बना देना ये एक छोटा काम नहीं है. इन सब लोगों से घिरा क्या महसूस करता हूँ क्या कहूं? जब सबसे पहले वाले प्रधानाचार्य मिलते हैं तो लगता है धन ही जीवन है और जब नाथन या धर्मेन्द्र से मुखातिब होता हूँ तो लगता है एक जीवन सुधार दूंगा तो तमाम सम्पत्ति मिल जायेगी. सच कहूं तो उन प्रधानाचार्य के चेहरे पर चिंता चिता बन सुलग रही थी लेकिन ये दो लोग खुल कर मुस्कराते हैं इनके हाथ खुले होते हैं और ऊपर वाला भी इन पर नियामत लुटाता है. बस कोशिश करें की हम भी इन दो जैसे हाथों को फैला सारे जहां को समा लें...
मेरे दोस्त धर्मेन्द्र और नाथन को... शब्द खत्म हो जाते हैं सिर्फ दुआएं निकलती हैं.



गुरुवार, 9 जनवरी 2014

नमो-नमो कहीं केजरी की भेंट ना चढ़ जाय

अजी बस हर ओर एक ही हल्ला है केजरीवाल और "आम आदमी पार्टी". पिछले एक साल से देश में प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा मोदी को आगे कर रही थी और सारा देश नमो-नमो का जाप कर रहा था. लेकिन दिल्ली में केजरीवाल क्या आये? सब कुछ बदलने लगा. मोदी का ग्राफ भाजपा के साथ नीचे आने लगा है कई बीजेपी के नेता जो कि गुजरात से सम्बंधित हैं अब "आप" का जाप कर रहें हैं. मोदी तो प्रधानमंत्री के रूप में पहली पसंद जरूर हैं लेकिन सांसद के लिए वोट का सवाल है तो आप काफी आगे है. जब वोट आप को पड़े तो फिर भाजपा के नमो की प्रसिद्धि का क्या फायदा होगा? शहरों में केजरीवाल जिस तरीके से पकड़ बना रहें है उससे तो ये साफ़ दिख रहा है एक बार फिर आम आदमी के साथ केजरीवाल देश की राजनीति की दिशा को अपने साथ मोड़ने के लिए तैयार हैं. आज आई.बी.एन. 7 से इस्तीफा दे आशुतोष भी आम आदमी पार्टी में  शामिल होने की बात कर रहें हैं. ना सिर्फ शहरों में बल्कि गावों और कस्बों में भी केजरीवाल का जादू सर चढ़ बोल रहा है. ना सिर्फ युवाओं में बल्कि सभी आयु वर्ग में केजरीवाल के चाहने वाले हैं. देश भर में आम आदमी पार्टी की लगातार बढ़ती पॉप्युलैरटी से न सिर्फ बीजेपी, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भी डरा हुआ है. आरएसएस ने दिल्ली में आप की कामयाबी को बीजेपी के लिए बड़ा संकट बताया है. संघ ने कहा है कि राज्यों में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में जीत से बीजेपी को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की, वहीं दिल्ली में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को सरकार बनाने से रोक दिया. असल में आरएसएस की ये चिंता जायज भी है क्योंकि इस समय एक मौक़ा है जब भाजपा केंद्र में सरकार बना सकती है और अभी ये ना हो पाया तो भाजपा को लंबा इन्तजार करना पड़ सकता है. 

केजरी सर-सर-कार ये कैसी सरकार है?


Get your own Wavy Scroller


दिल्ली को काफी ना-नुकर के बाद एक आधी अधूरी सरकार तो मिल गयी लेकिन लगता है ये एक अपरिपक्व सरकार है, जिसका कोई एक केंद्र न हो ये बहुकेन्द्रित सरकार है. ये सरकार किसी नियम या कायदे से बंधी नहीं दिख रही है. तीन फैसलों के अलावा इस सरकार के पास बताने को क्या है? ये तो खुद इन्हें ही नहीं पता होगा. बिजली और पानी के लिए तो सब्सिडी की सीढ़ी चढ़ केजरीवाल ने धमाल कर दिया. भ्रष्टाचार के लिए बनी हैल्प लाइन पर शिकायत नहीं सुनी जायेगी बल्कि स्टिंग आपरेशन करने सिखाये जायेंगें. इसके अलावा पार्टी के बड़े नेता कश्मीर के बारे में एक दुखद रवैया रखते हैं. इसे सरकार ना कह सिर्फ एक दवाब समूह का शासन कहा जाय तो अच्छा होगा. क्योंकि इसके राज में जो भी हो रहा है वह सिर्फ आम आदमी पार्टी के पोर्टल पर दिख रहा है. दिल्ली सरकार के पोर्टल पर कोई भी जानकारियां उपलब्ध नहीं हैं, इसका सीधा मतलब क्या है इस सरकार को अपने ही सरकारी तन्त्र से परहेज है. सत्ता में आने के बाद भी सरकार शब्द से कट कर क्या साबित करना चाहते है "आप" के लोग. कार्यशैली देखिये जीते-हारे सारे विधायक, मंत्री, वालियेंटर सब कुल मिला कर अफसरों की क्लास लेने में उलझे हैं. कहीं किसी को कुछ करने का मौक़ा ही नहीं दे रहें हैं. ऐसे में दिल्ली का क्या होगा ये सवाल काफी बड़ा है. इसके अलावा लोकसभा की 300 से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार कर केंद्र में भी सत्ता सुख का आभास लेना अब इसका अगला टार्गेट है. एलीट क्लास की एक बड़ी भीड़ आजकल इस पार्टी के इर्द-गिर्द दिख रही है. बड़े-बड़े कार्पोरेट घरानों को बाय-बाय कर ये लोग पार्टी से जुड़ रहें हैं. कुछ टिकट के जुगाड़ में तो कुछ किसी और जुगाड़ में. ये देश भी बड़ा अजीब है, कभी किसी को अर्श पर ले आता है तो किसी को फर्श पर. अभी आप का समय चल रहा है. लेकिन कहीं जनता का ये मोह अन्तोत्गत्वा जनता को महंगा साबित ना हो. आने वाले लोकसभा चुनावों में "आप" अपना वजूद जाहिर करेगी ये तो तय है और दिल्ली के तख्त की लड़ाई को मजेदार भी बनायेगी. कहीं ऐसा ना कि अभी तक बिखरे तमाम दल एक छतरी के नीचे आ जाएँ और दक्षिण और वामपंथ जैसे शब्दों की खाई भी पट जाए. वैसे केजरीवाल खुद और अपनी पार्टी को आम जनता के साथ जोड़ कर दिखा रहें हैं लेकिन इस देश में जहां एक धर्म और एक जाति के अन्दर ही ना जाने कितने विभाजन हैं वहां ये नारे कितने काम आयेंगें पता नहीं. स्वराज की बात यहाँ कौन नहीं करता... और कौन इसको स्थापित करने के लिए कोशिश करता है ये सवाल भारतीय राजनिती में काफी बड़े हो जाते हैं.